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________________ (३५०) जैनतत्त्वादर्श. चिधर्मवाला गणवा ? तेथी जे उष्टोनी एवी समज के, अन्न तथा मांस, श्रा बने एक सरखां , तेउनी बुद्धिमा, जीवित तथा मृत्यु श्राप नारां अमृत तेमज विष सरखांज जे. __ वली जे जडबुद्धिमानोनुं एबुं मानवू डे के, उदननी जेम, मांस प्राणीनुं अंग होवाथी खावा योग्य बे. श्रा तेर्जुनी मान्यता वास्तविक नथी, कारण के जो तेम होय तो गाय, मूत्र, तथा माता, पिता, स्त्री, पुत्री, ए सर्वेनुं मूत्र तेमज विष्टा, केम खाता पीता नथी, कारण के ते पण प्रा. णीना अंगथी उत्पन्न थयेल जे. वली पोतानी स्त्रीनी जेम, पोतानी माता, बेहेन दीकरीनी साथे केम गमन करता नथी ? स्त्रीत्व तेमज प्राणी अंगत्व सर्व स्थलें बराबर . वली जेम गायतुं उध पी बो, अने मातार्नु पय पान करो बो, तेम गायतुं रुधिर तेमज मातानुं रुधिर केम पिता नथी ? कारण के प्राणी अंग हेतु सर्वस्थते तुल्य . ते हेतुथी जे अन्न तथा मांसने एक सरखां माने बे,ते महापापीउना सरदारले. वली शंखने पवित्र माने , परंतु पशुना हाडने को पवित्र मानता नथी, ते कारणथी अन्न तेमज मांस, प्राणी अंग , तो पण अन्न जदय , अने मांस अजय . एक पंचेंजिय जीवनो वध करीने मांस खावाथी जेम खानारने नरकगति प्राप्त थाय बे, तेम तेवी मानी गति श्रन्नखानारनी थती नथी; कारण के अन्न, मांस थई शकतुं नश्री. मांसनी तसीरोथी अन्ननी तसीरो ओर तरेदनी बे. मांस महाविकार करे , अन्न तेम करतुं नथी. इत्यादि विलक्षण खनाव , तेथी मांस खानारनी नरकगति जाणीने संत पुरुषो अन्नना जोजनथी तृप्ति मानेबे, अने उत्तम पद प्राप्त करे . आ सर्व मांसनां दूषणो श्रीमद् हेमचंडसूरिकृत योगशास्त्रने अनुसारें लखेला . वली वर्तमानमां बुद्धिमान् पाश्चिमात्य लोकोए मांस खावाथी चोवीश उर्गुण प्रगट थाय डे, एम बतावेलु , अने मदिराथी तो एटली खराबी थाय ने के जेनी गणत्री पण थई शकती नथी. ते कारणथी मदिरा तेमज मांस श्रा बने श्रजयनो श्रावक त्याग करे, श्रा सातमुं अजय कडं. श्रापमुं अजय माखण जे. जैनमतना शास्त्रानुसार गशथी बहार काढेला माखणने ज्यारे अंतर्मुहूर्त अर्थात् बे घडी काल व्यतीत
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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