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________________ (३३०) जैनतत्त्वादर्श. श्रा सर्व पराइ वस्तु , ते वस्तु तत्वज्ञानमां जीवने अग्राह्य बे, बतां तेमनी जे उदय नावथी वांग करवी ते नाव चोरी समजवी. जिनागम श्रवण करी तेमनो त्याग करवो, तथा पुजलानंदि पणानो अनाव करवो, तेज नाव अदत्तादान विरमण व्रत . जे जे कर्मप्रकृतिनो बंध नाश पामेल होय, ते नाव अदत्त विरमण व्रत कहेवाय. सामान्य प्रकारे श्रदत्तना चार नेद बे. १ कोश्नी वस्तु तेनी परवानगी विना लेवी ते खामि अदत्त. ५ सचित्त वस्तु अर्थात् जीववाली वस्तु, फूल, फल, बीज, गुबा, पत्र, कंद मूलादि, बकरा, गाय, सुअरादि, तेजेनो नाश करवो, बेदवां, नेदवां, कापवां इत्यादि ते जीव अदत्त, हेतु ए के फुलादि जीवोए पोताना शरीरने बेदवा, नेदवानी आज्ञा आपी नथी, के अमाकं बेदन, नेदन करो, ते कारणश्री ते जीव श्रदत्त जे. ३ जे वस्तु तीर्थकर, अर्हत जगवंतें निषेध करेली , तेउनु जे ग्रहण करवू, जेमके साधुने अशुद्ध आहार करवानो निषेध , अने श्रावकने अजय वस्तुग्रहण करवानो निषेध बे, बतां ते श्राज्ञाविरुक ग्रहण करे तो ते तीर्थंकर अदत्त. ४ कोश साधु शास्त्रोक्त रीति मुजब निर्दोष आहार शुद्ध ग्रहण करी लावे, पनी ते आहारा दिने गुरुनी आज्ञा विना उपनोगमां बहे तो ते गुरु अदत्त, पूर्वोक्त चारे अदत्त संपूर्ण तो जैनना यतिज त्यागी शके, गृहस्थथी तो मात्र खामि अदत्तज त्यागी शकाय बे, ते कारणथी तेनीज आ स्थले मुख्यता . सारांश के पराश् वस्तु पूर्वोक्त रीते लेवी नहि, जो लहे तो चोर कहेवाय, राज्यदंड पामे, अपयश, अपकीर्ति, अप्रतीति थाय, ते कारणथी पारकी वस्तु ग्रहण करवी नहि. जे वस्तु यत् किंचित् मूल वाली , अर्थात् जे लेवाथी तेना मालेकने एवं नुकसान थतुं नथी के को समजु माणसना विचारमा ते नारे पडतुं थाय, सारांश के जे लेवाथी चोर नाम पडतुं नथी, तेवी वस्तु लेवानी जयणा राखे. वली कोइनी पडीगयेली वस्तु हाथमा आवे, पळी जाणवामां आवे के ते वस्तु अमुक सख्सनी बे, तो ते वस्तु तेने आपे, जो ते वस्तुना मालेकनो पत्तो न मले, अने पोतानुं मन दृढ रहे तो ते वस्तु पोते राखे नहि कदाचित् बहु मूल्यवान् वस्तु होय, अने मन दृढ रहे तो ते वस्तु
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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