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________________ (३०४) जैनतत्त्वादर्श. टला अंगलूहणां आपुं, वर्षमा पाटर्बु केशर, चंदन, बरास, कपुरप्रमुख जगवान्नी पूजामां वापरुं, धूप, अगरबत्ति उखेमू, अक्षत, नैवेद्य, फल पूजा था प्रमाणे करूं, धनने अनुसार वर्षमा आटली अष्टप्रकारी, सत्तर प्रकारी पूजा रचावू, वर्षमां आटला रुपैया साधारण व्यमा खरचं, वअमां आटवू अव्य पूजावास्ते खरचुं, दिनदिन प्रति एक नवकारवाली अर्थात् माला पंचपरमेष्टि मंत्रनी, मोक्षानिमित्त जपुं, दिनप्रति रोगना अनाव बते नमस्कार सहित बे घडी दिन चडे त्यांसुधी चार आहारतुं प्रत्याख्यान करूं, रात्रिमा विहार प्रत्याख्यान करूं, रोगादिकारणे न थश् शके तो श्रागार, वर्षप्रति आटला साधर्मी बंधुजने जमाडं, ए प्रमाणे सम्यक्त्व पादुं; तथा सम्यक्त्वना पांच अतिचार डे ते टावं. ते पांच अतिचार्नु स्वरूप कहिये लियें: १ प्रथम शंका अतिचार. जिनवचनमा शंका न करवी, कारण के जिनवचन बहुज गंजीर ; ते सर्वना यथार्थ अर्थ समजावनाराका . लमां को गुरु नथी, वली शास्त्रो जे जे ते अनंतनयात्मक बे. ते मां गणतरी तथा संज्ञा विचित्र तरेहनी . को स्थडे कोडीशब्द कोडनो वाचक , तो कोई स्थलें रूढी वस्तुवाचक , कारण के श्रीनगणि क्षमाश्रमण सर्वसंघना सम्मत आचार्य, संघयणनामा पुस्तकमां तथा विशेषणवती ग्रंथमा लखेने के, कोश्क आचार्य कोडी शब्दने क्रोडनो वाचक मानता नथी, परंतु संज्ञांतर मानेडे, वर्तमान कालमां वीशने पण कोडी कहे, तथा सोरठ देशमां पांच आनाने पण कोडी कहेले. जेवो श्रा कोडी शब्दमा मतांतर बे, तेवी रीतें शत, सहस्र शब्दोपण को संज्ञाना वाचक होय तो कांश दोष नथी. वली शत्रुजय तीर्थमां ज्यां मुनि मोद गयेला बे, त्यां पण पांच कोडी श्रादिशब्दोनी को संझा , तेवीजरीतें बप्पन कुलकोडी जादव कहेवायचे, त्यांपण यादवोना उप्पन कुलोनी कोडी को संज्ञा विशेष , एजप्रमाणे शास्त्रोमां सर्वस्थलें चक्रवर्तिनी सेना, तथा कोणिक चेटक राजाउनी सेनामा जे कोडी तथा शत सहस्र शब्दो बे, ते संझाविशेषवाचक संजव थायडे, ते कारणथी सर्व शब्दोना सर्वस्थलें एकसरखा अर्थ मानवा युक्त नथी. था-कथनमां पूज्यश्री जिनजगणितमाश्रमण पुरा सादो आपनारळे
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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