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________________ सप्तम परिबेद. (३०३) श्रा त्रणे तत्त्वनी जे निश्चल परिणतिरूप श्रद्धा ते सम्यक्त्व कहेवाय बे. जे जीवने ए प्रमाणे बोध न होय ते जीव जो कदी पक्षपात रहित, एम मनमा धारे के “ तं सवं निस्संकं, जं जीणेहिं पवेश्यं - त्यादि" जे जिनेश्वर जगवाने अर्थ कह्या बे ते सर्व निःशंकित सत्य , तो तेनी एवी तत्त्वार्थश्रद्धा पण सम्यग्दर्शन कहेवाय बे. तेनाथी विपरीत ते मिथ्यात्व कहेवाय . या मिथ्यात्वनुं खरूप नवतत्वखरूपमा लखी श्राव्या बीए त्यांची जाणवू. मिथ्यात्वनो त्याग तेज सम्यक्त्व कहेवाय . इति व्यवहारसम्यक्त्वस्वरूप, हवे निश्चय' सम्यक्त्वनुं स्वरूप लखीए बीए. पूर्वे निश्चय देव, गुरु अने धर्मनुं जे स्वरूप कडं , तेज निश्चय सम्यक्त्व जे. जे जीव चार अनंतानुबंधी कषाय, सम्यक्त्व मोह, मिश्रमोह, मिथ्यात्वमोह, श्रा सात प्रकृतिनो उपशम, क्षयोपशम, तथा कय करे तेने निश्चय सम्यकत्व थाय बे. निश्चय सम्यक्त्व परोदज्ञाननो विषय नथी, केवली जाणी शके बे, के श्रा जीवने निश्चय सम्यक्त्व . आ सम्यक्त्व प्रगट थतां जीवने नरक, तिर्यंच, आ बंने गतिना आयुनो बंध थतो नथी. हवे सम्यक्त्वनी करणी लखीये बीयें. सम्यक्त्वी जीव नित्य योगवा मलतां, तथा शरीरमां व्याधिनो अनाव उते, जिनप्रतिमानां दर्शन कर्या पली नोजन करे, जो जिनप्रतिमानो योग न मले तो पूर्व दिशि सन्मुख बेसी वर्तमान तीर्थंकरोतुं चैत्यवंदन करे, जो रोगादि विघ्नथी दर्शन न थाय तो जेउँने आगार बे, तेजेना नियमनो जंग थतो नथी. जिनेश्वर जगवान्ना मंदिरमा दश मोटी आशातना अवश्य वर्जे. तेनां नाम. १ तंबोल, फल प्रमुख खावानी वस्तु नगवान्ना मंदिरमां खाय नहि, २ पाणी, उध, बाश, अर्क प्रमुख पीये नहि, ३ नोजन करे नहि, ५ मंदिरनी अंदर उपानह प्रमुख लावे नहि, ५ स्त्री आदि संग मैथुन सेवे नहि, ६ शयन करे नहि, ७ धुंके नहि, लघुशंका करे नहि, ए जंगल (दिशा) जाय नहि, १० मंदिरमा जुगार, चोपट, चित्तरंज प्रमुख खेले नहि. आ दश धाशातना टाले, तथा उत्कृष्टी चोराशी आशातना वर्जे. वली एक मासमां आटला फुलहार चढावू, एकमासमां आटवू घी आपुं, एकवर्षमां श्रा
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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