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________________ सप्तम परिबेद (एए) रूप . १ नामनिदेप, ५ स्थापना निक्षेप, ३७व्य निक्षेप, ४ जावनिक्षेप श्रा चारे निदेपर्नु विस्तारपूर्वक स्वरूप जोर्बु होय तो विशेषावश्यक अवलोकन करवू. प्रथम निदेप, नाम अर्हत अर्थात् “नमो अरिहंताणं" एम कहे. आ पदनो जप करवाथी अनेक जीव संसारसमुख तरी गयेल . बीजो स्थापनानिदेप, ते अरिहंतनी प्रतिमा, समस्त दोष चिह्रोथी रहित सहज सुजग, समचतुरस्त्र संस्थानवाली, पद्मासन, कायोसर्ग मुसारूप, शांतरसमय जिनबिंब देखीने, तेनी सेवा, पूजा, जक्ति करवायी अनंत जीवोए मोक्ष प्राप्त करेल , प्रश्न:-अरिहंतनी प्रतिमा पूजवी तथा तेने नमस्कार करवो, एम स्थापना निदेपने भानी, प्रतिमाने मुक्तिदायक समजवी, आ नि:केवल मूर्खतार्नु चिह्न , कारण के प्रतिमा जडरूप होवाथी शुं श्रापी शके डे ? उत्तरः-हे जव्य ? आप को पण शास्त्रने परमेश्वरनां वचनरूप मा. नोडो के नहि ? जो शास्त्रने परमेश्वरनां वचनरूप मानता हो, तेमज ते शास्त्रने सत्यखरूपें संसारसमुथी पार उतारनार मानता हो तो, तेवीज रीतें परमेश्वरनी प्रतिमाने मानवामां शा वास्ते लजा धारण करोडगे ? जेवू शास्त्र जडरूप में, अर्थात् तेमां श्याही अने कागल शिवाय बाकी कां पण नथी, तेवी परमेश्वरनी प्रतिमा पण ने, जो एम कहो के कागलो उपर श्याहीथी अक्षर संस्थान पडेलां वांचवाथी परमेश्वरना क. थननो बोध थाय बे, तो तेवीज रीतें परमेश्वरनी मूर्ति देखवाथी पण परमेश्वरना स्वरूपनो बोध थाय . प्रश्नः-प्रतिमा देखवाथी अरिहंत स्वरूप तो स्मरण थाय बे, परंतु प्रतिमानी नक्ति करवाथी शुं लाज ? उत्तरः-शास्त्र श्रवण करवाथी परमेश्वरना वचननो बोध थयो तो पण जक्तजनो जेम शास्त्रने उच्चस्थानमा राखे , को शिरपर लश् फरे , को गलामां लटकावी राखे , केटलाएक सिंहासन उपर, केटलाएक सुंदर बाजोठ उपर शास्त्रोने सुंदर सुंदर रुमालोमां लपेटी राखे , श्रने शास्त्रोनी पूजा, नक्ति, बहुमान, नमस्कार प्रमुख करे . जेम शास्त्रनां वचनो विनय, बहुमानपूर्वक श्रवण करवायी तेथी थता अनेक लाजनो जक्तजनो अनुजव करे , तेवीजरीतें जिन प्रतिमानी विनय, बहुमानपू
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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