SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 195
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २) जैनतत्त्वादर्श. षायनी चोकडी क्षय करे .त्रीजा नागमा नपुंसक वेदनो अने चोथा नागमा स्त्रीवेदनो क्षय करे , पांचमा नागमां हास्य, रति, अरति, जय, शोक, जुगुप्सा 3 नोकषायनो क्षय करे बे, बाद ध्याननी अति निर्मलताथी बहा नागमा पुरुषवेदनो, सातमा जागमां संज्वलन को. धनो, श्रापमा जागमां संज्वलन माननो, अने नवमा नागमां संज्वलन मायानो कय करे , तथा आ गुणस्थानमा वर्त्तता मुनि हास्य, अरति, जय, जुगुप्सा, श्रा चारनो व्यवछेद होवाथी, बावीश प्रकृतिनो बंध करे बे, अने हास्यषटनो उदयव्यवछेद थवाथी असर प्रकृतिने वेदे. तथा नवमा अंशमां मायापर्यंत प्रकृतियोनो दय करवाश्री, पांत्रीश प्रकृति व्यवछेद थवाथी एकसो त्रण प्रकृतिनी सत्ता बे. __ हवे दपकना दशमा गुणस्थानकनुं स्वरूप लखीये बिये. पूर्वोक्त नवमा गुणस्थानक अनंतर दपकमुनि सूदम संपराय नामा दशमागुणस्थानपर आरोह करे . शुं करीने ? क्षणमात्रमा संज्वलनना स्थूल लोजनो क्षय करतां थकां आरोह करे . सूदम संपराय गुणस्थानस्थ जीव, पुरुषवेद तथा संज्वलन चतुष्कनो बंधव्यवछेद थवाथी सत्तर प्रकृतिनो बंध करे बे, अने त्रण वेद तथा त्रण कषायनो उदयव्यवछेद थवाथी साठ प्रकृति वेदे , मायानी सत्ता व्यवछेद थवाथी एकसो बे प्रकृतिनी सत्ता जे. हवे आपकमुनिने अगीआरमुं गुणस्थानक प्राप्त यतुं नथी, परंतु द. शमा गुणस्थानकथी सूक्ष्म लोजना अंशोना सूदम खंड करता करतां क्षपक, बारमा वीणमोदवीतराग गुणस्थानमां जाय . अहींयां दपक श्रेणि समाप्त करे बे. तेनो अनुक्रम था प्रमाणे जे. प्रथम अनंतानुबंधी चार कषायनो कय करे , पड़ी मिथ्यात्व मोहनीयनो, पनी मिश्रमोहनीयनो, पडी सम्यक्त्व मोहनीयनो, पड़ी अप्रत्याख्यान चार कषायनो, पडी प्रत्याख्यान चार कषायनो, पनी नपुंसक वेदनो, पडी हास्यषट्कनो, पनी पुरुषवेदनो, पडी संज्वलन क्रोधनो, पडी संज्वलन माननो, पनी संज्वलन मायानो अने वटे संज्वलन लोजनो क्षय करे बे. हवे बारमा गुणस्थानमां शुक्लध्याननो बीजो पायो प्राप्त थाय ने तेनुं स्वरूप कहियें लियें, दपकमुनि क्षीणमोही थवाथी बारमा गुणस्थान
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy