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________________ (१४) जैनतत्त्वादर्श. मली पचीश कषाय, संसार स्थितिनां मूल कारणो बे, तेमनुं विस्तारथी कथन आगल करेढुंबे. हवे योगनामें बंध हेतुनुं स्वरूप लखियें लियें. ते मन, वचन, काय, एम योगना त्रण प्रकार . या त्रणना उत्तर नेद पंदर . मनोयोगना चार नेद, वचनयोगना चार नेद तथा काययोगना सात नेद सर्व मली पंदर नेद . मननाम अंतःकरणतुं , तेना चार प्रकार . १ सत्य मनोयोग, २ असत्य मनोयोग, ३ मिश्र मनोयोग, ४ व्यवहार मनोयोग, मन शुं वस्तु बे? कायाना व्यापारथी पुजल ग्रहण करीने, ते पुजलोने चिंतन धर्मरूपें काढवां ते अव्यमन में अने ते पुजलोना संयोगथी जे ज्ञान उत्पन्न थाय तेनुं नाम जावमन बे. ते ज्ञानश्री व्यवहार सिक थाय बे, श्रने ते व्यवहारथी मन पण सत्यादि व्यपदेशने प्राप्त थाय . वली उपचारे अव्यमन पण शायक . वली मन शब्दथी मनोयोग, तेनो इंजियावरण कर्मना क्षयोपशमथी उत्पन्न थयुं जे मनोज्ञान, तेनाथी परिणत आत्मा ने बलाधान करवावाली मनोवर्गणाना संबंधश्री उत्पन्न थयु जे वीर्य वि. शेष, ते अहीया मन जाणवू. तेवीज रीते वचनयोग, ते वचननी वर्गणा अर्थात् परमाणुऊनो समूह, ते वचन वर्गणाथी उत्पन्न थयुं जे सामर्थ्यविशेष, आत्मानी परिणति, ते वचनयोग जाणवां. ते मनोयोग तथा वचनयोगना मली बार प्रकार ले. प्रथम मनमा जे सत्य व्यवहारतुं चितवन करवं, ते सत्यमन, जेमके जीवादि पदार्थ अव्यरूपें नित्य, पर्यायरूपें अनित्य, एम अनेकांतपणे चिंतववं, ते सत्यमनोयोग. तेनाथी विपरीतपणे जीवादि पदार्थोनुं स्वरूप वचन निरपेक्षपणे चिंतव, तेमज धर्म नथी, पुण्यपाप नथी स्वर्ग नरक नथी इत्यादि चिंतवन करवं ते असत्य मनोयोग. तेवीजरीतें सत्यचिंतवन वचनरूपें बोलवू ते सत्यवचनयोग, अने असत्यचिंतवन वचनरूपें बोलवु ते असत्यवचनयोग. तथा कांक असत्य, जेम के श्रा गाममां आजे दश जन्म्या, तथा दश मुश्रा, तेमां कांश्क साचुं अने कांक जुटुं चिंतवन करवू तथा गोवर्गने देखीने चिंतवई के था सर्व गायो बे, पळी तेमां बलद पण होय ते मिश्रमनोयोग, अने ते प्रमाणे
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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