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________________ पंचम परिबेद. (१४७ . निवारणवास्ते नावपूर्वक वीतराग देवने मानवा, ते लोकोत्तर देवगत मिथ्यात्व . दृष्टांत. जे पुरुष चिंतामणी रत्ननो दातार होय, तेनी पासे काचना कटकानी मांगणी करवी ते जेम हास्यास्पद तेमज अज्ञानता बे, ते समान आ श्छा बे, तेथी अयोग्य , जेने कर्मप्रकृति स्वरूपनुं ज्ञान तेमज अनुजव न होय तेज एवी मागणी करे . ____५ लोकोत्तर गुरुगत मिथ्यात्व पोते निर्गुणी बतां साधुनो वेष राखे, जीववाणीने उनापी, पोताने मनःकल्पित उपदेश आपे सूत्रना साचा अर्थने त्रोडे, एवा उत्सूत्रना प्ररूपक ते ने गुरु जाणी, तेउनुं बहुमान जक्ति पूजा करवी ते तथा जे साधु गुणवान् होय, तपस्वी होय, चारित्रपात्र होय, श्राचारवंत, तेमज यथोक्तक्रियावंत होय, तेमनी श्रा लोकना सुखवास्ते, तेमज परलोकना पौजनिक सुखवास्ते, सेवा करे बहु मान करे, मनमां एम पण जाणे के जो तेमनी बहु सारी रीतें सेवा करीश तो तेमनी मेहेरबानीश्री, धन झछि स्त्रीपुत्रादि परिवार मने प्राप्त थशे, एवा परिणाम ते लोकोत्तर गुरुगत मिथ्यात्व, ६ लोकोत्तर पर्वगत मिथ्यात्व. जिनेश्वर नगवानना पांच कल्याणकनी तिथियोने दिने, तथा बीजा पर्वने दिने, धन, स्त्री, पुत्रादिवास्ते तप, जपादि धर्मकरणी करवी ते लोकोत्तर पर्वगत मिथ्यात्व . इत्यादि मिथ्यात्वना अनेक नेद , परंतु ते सर्वे पूर्वोक्त अनिग्रहादि मिथ्यात्वमां अंतर्भूत . हवे बार प्रकारनी अविरतिनुं खरूप कहियें बियें. पांच इंजिय, अने ब्तुं मन, तेमज ब काय, मली बार प्रकार , तेमनुं स्वरूप एवं डे के, पांचे इंजियोने पोत पोताना विषयोमा प्रवविवी, ते पांच तथा कोश पण पापमय वस्तुथी मननो निरोध न करवो ते, तथा ब जीवनिकायनी हिंसामा प्रवृत्ति करवी, ते सर्व मली बार अविरति . हवे कषाय बंधना पचीश नेदतुं स्वरूप कहिये बियें. अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोज, तथा अप्रत्याख्यानी क्रोध, मान,माया, लोज, तथा प्रत्याख्यानी क्रोध, मान, माया, लोज, तथा संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोन, मली सोल, तथा.नव नोकषाय, १ हास्य, २ रति, ३ श्ररति, ४ जय, ५ शोक, ६ जुगुप्सा, ७ स्त्रीवेद, पुरुषवेद, ए नपुंसकवेद
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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