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________________ अनुक्रमणिका: atraani Maa तेना नाम, तदंत र्गत २२६ मा पानामां नीच उच्च वर्ण नहीं मानवावाला लोकोनुं पण निराकरण बे. २१६ ६ पांचमा श्रव तत्वना स्वरुपमां याश्रवना उतर नेद, जे पांच इंडिय, चार कषाय, पांच व्रत, पच्चीश असत् क्रिया तथा त्रण योग, ए बेंतालीश नेद कडेल बे, तेमां श्रव म दनुं स्वरूप, तथा पांच व्रत द्रव्य तथा जाव, ए बे नेदे करीने बतावेल बे, तथा द्रव्यहिंसा तथा जाव हिंसानुं स्वरूपचनंगी करीने कडेल बे; ए प्रमाणे पांचे व्रतोनुं स्वरूप चनंगी पुर्वक कल बे. प्र वा संवर तत्वना स्वरूपमां पांच समिति यादिक सत्तावन नेद कल बे, तेनुं स्वरूप गुरुतत्वमां लखेल बे, पण श्रहींयां तो मांयी बावीश परीसहनुं स्वरूप विस्तारथी बे. २३६ + ८ सातमा निर्जरा तत्वनुं स्वरूप गुरु तत्वमां संदेपथी कहेल बे. १३७ ए आवमा बंध तत्वना स्वरूपमां को एक वादी कहे वे के, जीव प्रथम पुण्य पापनो बंध करीने रहित थया, पढी थी पुण्य पापनो बंध थाय बे, इत्यादि ब ' विकल्पनुं समाधान करीने पढी बंधना मुल हेतु चार तथा पांच प्रकारना मिथ्यात्व, बार प्रकारनी विरति, पच्चीश कषाय, तथा पंदर योग, मली सत्तावन उत्तर हेतुना नाम. १३ १० - नवमां तत्वमां सत्पदादि नव द्वारोथी सिद्ध जगवाननुं स्वरूप १५१ ॥ उघा परिछेदमां चौद गुणस्थाननुं स्वरूप बे, तेनी अनुक्रमणिका ॥ १ प्रथम मिथ्यात्व गुणस्थानकना स्वरूपमां मिथ्यात्वनुं गुणस्था 1 नक केवी रीते कद्देवाय डे ? एवी आशंकानुं समाधान, तथा मिथ्यात्वनुं कांक स्वरूप पण कहेल बे. २५५ 2 बीजा सास्वादान गुणस्थानकना स्वरूपमां तेनुं कारणभूत जे पशमिक सम्यक्त्व बे, तेनुं स्वरूप. ६ २२७ ԱԱՍ श्‍ ३ श्रीजुं मिश्रगुण स्थानकनुं स्वरूप. ४ चोथा अविरति सम्यग्रदृष्टि गुणस्थानकना स्वरूपमां सम्यक्दृष्टि जीवनुं लक्षण, अने यथाप्रवृत्यादि त्रण करणोनुं लक्ष्ण २६०
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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