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________________ पंचम परिजेद. (१५) सहित, सुंदर श्राकार, पोताना आंगल प्रमाणे एकसो आठ आंगल प्रमाणशरीर थाय ते; हवे वर्ण, रस, गंध, अने स्पर्श, कहिये बियें. १० कृष्णादिवर्ण, १ए तिक्तादिरस, २० सुरच्या दिगंध, १ मृ श्रादि स्पर्श, जेना उदयथी शुज होय, २५ जेना उदयश्री मध्यम वजनदार शरीरनी प्राप्ति थाय, अर्थात् लोहनी जेम अत्यंत नारे नहि, अने आकडाना कपासनी जेम अति हलकुं पण नहि, परंतु मध्यमपरिणामी होय, तेने अगुरु लघु नामकर्म कहीये. २३ जेना उदयथी बीजाने हणीशके, तथा शरीरनी आकृति एवी होय के जेने देखीने बीजाउँने अनिजव अर्थात् असामर्थ्यता थाय ते पराघातनामकर्म कहीयें, २४ जेना उदयथी उहासनलब्धि, अर्थात् श्वासोबास लेवानी शक्ति जीवने थाय , ते उहासनामकर्म, २५ जेना उदयथी जीपनुं शरीर प्रकाशवातुं तथा सूर्यना बिंबनी जेम बीजाने ताप उत्पन्न करवाना हेतुरूप तेजयुक्त शरी. रनी प्राप्ति थाय , ते आतपनामकर्ग, २६ जेना उदयथी चंबिंबनी जे. म शीतलताने उत्पन्न करवाना हेतुरूप तेजयुक्त शरीरनी प्राप्ति थाय, ते उद्योतनाम कर्म; २७ जेना उदयथी जीवने विहायसनाम आकाश, तेमां जे गति, ते विहायोगति, ते गति राजहंससदृश होय, ते सुविदायोगति नामकर्म, २७ जेना उदयथी जीवने शरीरनां अंगोपांग आदिने नियतस्थानमा स्थापन करनार सूत्रधार (कारीगर) समान, अर्थात् नसो, जाल, मस्तकनी खोपरी, हाड, चा, कान, केश, नखादि शरीरना सर्व अवयवो योग्यस्थाने रचनार नामकर्मनी प्राप्ति थाय ते निर्माणनामकर्म, ए जेना उदयथी जीवने त्रसपणानी प्राप्ति थाय, ते त्रसनामकर्म, उष्णप्रमुखथी तप्त थतां विवक्षित स्थान तजी या प्रमुखमां गति करे, तेमज हींजियादि पर्यायनां फल लोगवे, ते त्रस. ३० जेना उदयथी जीव बादर (स्थूल ) शरीरवाला थाय, ते बादर नामकर्म, ३१ जेना उदयथी जीव पूर्वे कहेलीब पर्याप्ति पूर्ण करे , ते पर्याप्त नामकर्म, ३२ जेना उदयथी एक एक जीवने एक एक शरीर प्राप्त थाय , ते प्रत्येक नामकर्म, ३३ जेना उदयथी जीवने हाडप्रमुख अवयवो स्थिर, निश्चल होय , ते स्थिरनामकर्म, ३४ जेना उदयथी जीवने मस्तकप्रमुख श्रवयवो शुज होय . ते शुजनामकर्म, ३५ जेना उदयथी सौजाग्यवान्
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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