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________________ G प्रस्तावना. ध्ययन करनार, आदर्श ( खारीसा ) मां जोनार जेम पोताना प्रतिबिंबने जुए बे, तेम या ग्रंथरूप श्रादर्शमां तत्व स्वरूप जुए बे. या प्रसंगे मारे जणाववुं जोइए के, मात्र सांसारिक विद्याना अज्यासी वारंवार एवो सवाल करे बे के अमोने जैनदर्शननुं ज्ञान मेलवानी तो बहुज जीज्ञासा याय बे, परंतु पद्धतिप्रमाणे ज्ञान प्राप्त करवानुं कोश्पण ग्रंथकारे अत्यारसुधीमां एक पण साधन योजेलुं होय तेम मारी. नजरे श्रावतुं नथी. तेवा जीज्ञासुर्जने मारी नम्र विनंति एवी बे के सांसारिक तत्वनुं ज्ञान एकडेएकथी ते महान पाठशालाउंनी उंचा प्रकारनी केलवणी सुधी प्राप्त करतां केटलां वर्षो व्यतीत थाय बे, तेमां जेवी धीरज ने खंत राखो बो, तेना करतां था यति गहन धर्मतत्व विषयमां विशेष धीरज छाने खंत राखवानी जरूर बे. तत्वज्ञाननी जीज्ञासावालाने शरुआत करवामां या ग्रंथ श्रति उत्तम बे; ज्यां ज्यां पारिनाषिक कठिनता लागे, त्यां त्यां तत्ववेत्तार्जनी सहाय लेवी तत्वनुं ज्ञान लेशमात्र नहि तां मात्र सांसारिक विद्याना कारणथी पोताने कृतकृत्य मानवा ते मिथ्या जिमान बे. सांसारिक विद्या ऐहिक सुखनां साधनोनी योजना करी आपे बे, परंतु मुष्मिक सुखनां साधनो योजवामां तो तत्व विद्यानुंज साम्राज्य बे. सांसारिक विद्याना उत्कर्षरूप ज्वरने शांत करवामां श्र ग्रंथ परम उषध बे. . ग्रंथ हिंदुस्तानी जाषामां ग्रंथकर्त्ताए रचेलो बे, तेनुं गुजराती ाषामा जाषान्तर करी आपवानी मने मारा मित्रोए तथा गुरुराजना केटलाएक शिष्योए जलामण करी में तेमने कह्युं के हिंदुस्तानी जाषामां जे खुबी समायेली बे, ते गुजराती भाषामां कोश्पण ते ववानी नथी. बतांपि तेमनो आग्रह एवो थयो के काठीयावाड गुजरातना बहु लोको हिंदुस्तानी भाषा बराबर समजी शकता नथी, तेवार्डना हीतने अर्थे जाषान्तर करी थापो, ते कारणथी या जाषान्तर मारी अल्पमति अनुसार में कयुं छे. आ भाषान्तरमां जेजे स्थले भूल चूक मा लम पढे ते सर्वे सुइजनोए सुधारी वांचवा कृपा करवी. एज विनंति. ली. भाषान्तर कर्त्ता :7
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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