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________________ जनताल (२६०) जैनतत्त्वादर्श. प्रबलमोहविजृजितं ॥ श्लोक ॥ दग्धनः पुनरुपैति जवं प्रमथ्य, निर्वाणमप्यनवधारितनीरनिष्टं ॥ मुक्तः स्वयं कृततनुश्च परार्थशूर, स्त्ववासन प्रतिहतेष्विह मोहराज्यं ॥ १ ॥ श्त्यलं विस्तरेण ॥ पूर्वपदः-सुगतादि, ईश्वर चले न होय, परंतु सृष्टिना कर्त्ता तो महादेव ईश्वर बे, ते केम मानता नथी? उत्तरपदः-जगत्कर्ता ईश्वरनी सिछिमां प्रमाणनो अन्नाव , ते कारणथी मानता नथी. पूर्वपक्षः-जगत्कर्त्तानी सिधिमां प्रमाण . पृथिव्यादि को बुद्धिमाननां करेला . घटादि जेम कार्यरूप होवाथी; आ हेतु असिद्ध नश्री. पृथिव्यादि सावयव होवाथी कार्यत्वनी प्रसिद्धि होवाथी; तेमज जुर्म. पृथिवी, पर्वत, वृदादि सर्व सावयव होवाथी घटवत् कार्यरूप बे, वली आ हेतु विरुद्ध पण नथी, निश्चयपूर्वक करेला घटादिविषे कायत्वहेतु देखवाश्री, वली जेनो कर्त्ता नथी तेनाथी व्यावृत्त होवाथी अनेकांतिक पण नथी, तेमज प्रत्यद आगमपूर्वक अबाधित विषय होवाथी कालात्ययापदिष्ट पण नथी, श्रा निर्दोष हेतुथी जगत्कर्ता ईश्वर सिक थाय जे. उत्तरपक्षः-प्रथम पृथिव्यादि बुद्धिमाननां बनावेलांडे, आ सिद्ध करवा वास्ते कार्यत्वहेतु जे तमे कहोडो, ते हेतु शुं सावयवत्व ले ? के प्राग्वत् खकारणसत्ता समवाय ? के "कृतं" एवा प्रत्ययनो विषयत्व बे ? के विकारित्व ? जो एम कहो के सावयवत्वस्वरूप बे, तो श्रा सावयवपणुं शुं अवयवोविषे वर्तमानत्त्व ? के अवयवोथी आरज्यमाणत्व ? के प्रदेशत्व बे ? के सावयव एवी बुद्धिविषयत्व के ? प्रथम पदविषे अवयव सामान्य होवाथी था हेतु अनेकांतिक बे. तथा अवयवोविषे वर्तमान पण निरवयव तेमज अकार्य कहे , तथा बीजा पदमां हेतु साध्य समान बे. जेवी रीतें पृथिवी श्रादिने कार्यत्व साध्य बे, तेवीजरीतें परमाणु आदिने अवयव श्रारज्यत्व . त्रीजा पक्षमा आकाशनी साथे हेतु अनेकांतिक ने, कारण के आकाश प्रदेशवाळ बे, परंतु कार्य नथी. चोथा पदमा श्राकाशनी साथे हेतु व्यनि बलहेतु देखवाशी, वा पण नधी, निश्चयव होवाची घट
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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