SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१५३) जैनतत्त्वादर्श. बे, तेना मतनुं नाम नास्तिक चार्वाक . ते जीव, पुण्य पापादि कांई मानता नथी, चार जौतिक देह माने , तेमज सर्वजगत्ने पण चार लौतिक मानेडे. वली केटला एक चार्वाक एक देशी, श्रोकाशने पांचU नूत माने बे. पंचजूतात्मक जगत् के एम कहे . जूतोथीज मद्य शक्तिमत् चैतन्य उत्पन्न थाय डे एम तेर्जनो मत दे. पाणीना परपोटानी जेम, शरीर ने तेज जीव ने एम तेउनु मानवू . श्रआ मतवाला मद्य, मांस, खायचे; माता, बेहेन, दिकरी आदि जे अगम्यो, तेनी साये गमन करे ले. ते नास्तिक वामी, दरेक वरसे एक दिवस सर्वे, एकस्थडे एका थाय. स्त्रीउँने नग्न करी तेउनी योनिनी पूजा करे,तेमज विषय सेवनपण करे श्त्यादि, एवां बुरां काम करेले के आ पुस्तकमां तेनुं वर्णन करतां मने शरम लागे . तेथी लखेल नथी. ते नास्तिक कामसेवन उपरांत बीजो धर्म मानता नथी, मतलब के कामनेज धर्म माने. आ मतनी उत्पत्ति जैनमतंना शीलतरंगिणी नामना शास्त्रमा जे प्रमाणे लखेली ते प्रमाणे कहियें बियें. बृहस्पति नामनो एक ब्राह्मण हतो. तेनुं बीजुं नाम देवव्यास हतुं. तेने एक बेहेन हती. ते बाल्यावस्थामां विधवा थर हती. जेना आश्रयथी पोतानी जींदगी संपूर्ण करे एबुं को तेणीना सासराना घरमां साधन न होतुं, तेथी निराधार थश्ने पोताना जाश्ना घरमां आवी रही. ते अत्यंत स्वरूपवती तेमज यौवनवती हती, श्रा समये बृहस्पतिनी पत्नी मृत्यु पामी हती,बृहस्पतिने काम वासनाथी पीडा थावालागी, तेथी विषयासक्त थवाने लीधे पोतानी बेहेननी साथे विषयसेवन करवानी इला थर. विधवा बेहेनने प्रार्थना करी के हे बेहेन ? मारी साथे तु विषयसेवन कस्य, त्यारे तेनी बेहेनें कडं के हे ना? या वात उलयलोकविरुष्क , तेथी केम करी शकुं ? कारण के प्रथम तो हुं तारी बेहेन बुं तेथी नाश्नी साथे विषयनोग करूं तो अवश्य हुं नरकमां जाऊं, अने आ वातजो जगत्मा प्रसिद्ध थाय तो, सर्वलोकने धिक्कार पात्र थालं. एवी वात श्रवण करी बृहस्पतिए पोताना मनमां विचार कस्यो के, ज्यां सुधी तेणीना मनमाथी पाप, तेमज नरकादि कुःखनो नय दूर थशे नहि, त्यांसुधी ते मारी साथे कदापि संजोग
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy