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________________ चतुर्थ परिजेद. (२५१) य . वली धर्म ते केवो जे ? तथा क्या प्रमाणथी जाणियें ? एवी जे जाणवानी श्वा, तेनुं नाम जिजासा . ते जिज्ञासा केवी ते जिज्ञासा धर्म साधवानो उपाय , तेनुं नाम नोदना बे, ते नोदनानां निमित्त बेडे, एक जनक, बीजो ग्राहक के. अहियां ग्राहक निमित्त जाणवू. तेज विशेष खरूप कहियें बियें. श्रेयः साधकमव्यादिविषे जीवोने प्रेरियें जेनाथी, ते नोदना, वेद वचननी करेली प्रेरणा ले ॥ इत्यर्थः॥ धर्म नोदनाथी जणाय . ते कारणथी नोदनालक्षण धर्म , धर्म अतींजिय होवाथी नोदनाथीज जा. णियें लियें. प्रत्यदादि बीजा को प्रमाणथी जाणी शकातो नथी, कारण के प्रत्यदादि विद्यमाननाज उपलंजक डे. अने धर्म कर्त्तव्यतारूप ले अने कर्त्तव्यतात्रणेकाल खजाव वाली ले ते कर्त्तव्यतानुं ज्ञान नोदनाज उत्पन्न करी शके . आ मीमांसकोनो अभ्युपगम . हवे नोदनानुं व्याख्यान करिये जियें, अग्निहोत्र, सर्व जीवोनी अहिंसा, दानादि क्रिया ते करवावास्ते जे प्रवर्तक, प्रेरक वेदोनां वचन बे. तेज नोदना जे. जेम के “ अग्निहोत्रं जुयात् स्वर्गकामः" एवां जे प्रवर्तक वेदवचन , ते नोदना जाणवी. यथा ॥ " न हिंस्यात् सर्वतानि, तथा नवै हिंस्रो नवेत् " आ वचनोथी प्रेयां थकां अव्य, गुण, कर्मोथी हवनादिविषे जे प्रवृत्त थवं, ते धर्म , अने श्रावेदवचनोप्रेत्यां थकां पण जे न प्रवर्ते, अथवा विपरीत प्रवर्ते, तेने नरकादि अनिष्टफल थायजे. शाबरजाष्यमां पण एमज कहेल . श्रा जैमिनीय ब प्रमाण माने . १ प्रत्यक्ष, ५ अनुमान, ३ शब्द, ४ उपमान, ५ अर्थापत्ति, ६ अनाव. तेउनुं विस्तारथी खरूप जाणवू होय तो षम्दर्शन समुच्चयनी टीका जोवी. इति संक्षेपथी मीमांसकमत. आ पांच दर्शन आस्तिक केदेवाय बे, अने बहुं जैनदर्शन . तेनुंखरूप आगलना परिछेदमां लखवामां आवशे. नास्तिकमत दर्शनमां नथी. "नास्तिकं तु न दर्शन मिति राजशेखरसूरिकृतषम्दर्शनसमुच्चयवचनात्" ॥ तो पण नव्य जीवोने जाणवा वास्ते तेनु कांश्क खरूप लखिये बियें. ___ कपाली, जस्म लगावनार, योगी, ब्राह्मणादि, अंत्य जातिना लोक जेठने लोको वाममार्गी कहेडे, तेजे, तथा कौलिक इत्यादि नास्तिक
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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