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________________ चतुर्थ परिछेद. (१४७) ता" आत्मा जोक्ता, जोगवनार , जोक्ता पण सादात् नथी, परंतु प्रकृतिना विकारजूत उन्नय मुख दर्पणाकार जे बुद्धि , तेमां संक्रमण थयां थकां निर्मल आत्मखरूप विषे सुख दुःखोना प्रतिबिंब उदय मा थी जोक्ता केहेवाय बे. “ बुद्ध्यवसितमर्थ पुरुषश्चेतत" इतिवचनात्॥ जेम जासुस फुलनी समीप रेहेवाना कारणथी स्फटिकमां रक्ततादि केहेवामां आवे डे, तेम प्रकृतिना निकट संबंधथी पुरुषपण सुख दुःखोनो नोक्ता केहेवाय ने. सांख्य मतना वादमहार्णवमां पण कहे जे " बुविदर्पणसंक्रांतं, समर्थप्रतिबिंबकं ॥ द्वितीयं दर्पणं कल्पे, पुंसिअट्यारोहति ॥१॥ तदेव नोक्तृत्वमस्य नत्वात्मनोविकारापत्तिरिति ॥ श्रानो तात्पर्य उपर बतावेल बे. तथा कपिलनो शिष्य आसुरिपण कहे जे ॥ श्लोक ॥ विवक्तेहपरि णतौ, बुद्धौ जोगोऽस्य कथ्यते ॥ प्रतिबिंबोदयः खले, यथा चंगमसोंजसि ॥१॥ तथा विंध्यवासी सांख्याचार्य आत्माने तेवीज रीतें नोक्ता कहे . पुरुष अविकृत आत्माज बे, खनिर्नास अचेतन मन कर्ता . ते मननी निकटताथी उपाधि स्फटिकवत् देखाय बे; "नित्या या चिच्चेत ना तयाऽन्युपेतः” आ केहेवाथी पुरुषज चैतन्यखरूप . " नतु ज्ञानस्य" परंतु ज्ञान नथी, कारण के ज्ञाननो धर्म बुद्धि . तथा पतंजलि पण एमज कहे . तथा " पुमान् ” आ जे एक वचन डे ते जातिनी अपेदाथी ने; परंतु आत्मा अनंत , कारण के जन्म मरणादि कारणोना नियम, तथा धर्मादि अनेक प्रवृत्ति देखवामां आवे . ते सर्व अनंत आत्मा सर्वगत तेमज नित्य . ॥ उक्तं च ॥ अमूर्तिश्चेतनो नोगी, नित्यः सर्वगतोऽक्रियः॥ अकर्ता निर्गुणः सूक्ष्म, आत्मा कापिलदर्शनशति॥ सांख्यमत त्रण प्रमाण माने . १ प्रत्यद, २ अनुमान, ३ शब्द. ते मतनुं नाम सांख्य अथवा शांख्य शा वास्ते कहे ? तेनो हेतु एवो डे के, संख्या प्रकृति तत्व पचीश रूप तेने जे जाणे अथवा जणे. ते सांख्य. तथा जो तालु शकारथी बोलियें तो शांख्य एम केहेवाय. तेजेना मतमा शंखध्वनि ने एम वृझोनो श्रान्नाय तेथी शांख्य नाम बे. वली शंख नामे कोई श्राद्य पुरुष थया डे. "तस्यापत्यं पौत्रादिरिति गर्गा
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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