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________________ (१४६) जैन तत्त्वादर्श. सांख्यसप्ततौ ॥ “ मूलप्रकृतिर विकृति, महदाद्याः प्रकृतिविकृतयः सप्त ॥ षोडशकश्च विकारो, न प्रकृतिर्न विकृतिः पुरुष इति ॥ अर्थ:- ईश्वर कृष्ण, सांख्य मतना श्राचार्य सांख्यसप्ततिग्रंथमां लखेबे के. मूलप्रकृति विकृति महत् यादि सात प्रकृति विकृति बे, षोडशक विकार विकृति बे, छाने पुरुष न प्रकृति, न विकृतिडे तथा महदादि, प्रकृतिना विकार बे, ते व्यक्त थइने फरी अव्यक्तपण थ‍ जाय बे. ते नित्यदोवाथी पोताना स्वरूपथी द्रष्ट थइ जायबे; अने प्रकृति यविकृति रूप होवाथी पोताना स्वरूपथी द्रष्ट यती नथी. तथा महत् या दिनुं अने प्रकृतिनुं स्वरूप सांख्य मतवाला या प्रमाणे मानेडे. १ हेतुमत्, २ अनित्य, ३ व्यापक, ४ सक्रिय, ए अनेक, ६ आश्रित, लिंग, सावयव, ए परतंत्र, १० व्यक्त. प्रकृति तेनाथी विपरीत बे. १ हेतुमत्, कारण वाला बे, महत् यदि, नित्य, उत्पत्ति धर्मवाला, ३ अव्यापक, बुद्धि आदि व्यापिबे, सर्वगत नथी, ४ सक्रिय, अध्यवसायसंयुक्त वर्तेबे, ते हेतुथी क्रिया सहित, सव्यापार चालवा वालांबे, ए छानेक, त्रेवीश प्रकारना डे, तेथी, ६ आश्रित. आत्माना उपकार वास्ते प्रधानने अवलंबीने रहे 9 लिंग, जे जेमांची उत्पन्न थायडे ते तेमांज लय पामे बे, "लयंकयं गरबतीति लिंगं,” पांच भूत, पांच तन्मात्रामा लय पामेबे, पांच तन्मात्रा, दश इंद्रिय, अने मन, अहंकारमां लयपामेबे, अहंकार बुद्धिमां लयपामेबे, छाने बुद्धि प्रकृतिमां लय पामेबे; प्रकृतिनो कोइमां पण लय थतो नथी. ८ सावयव, शब्द रूप, रस, गंध, स्पर्शादि संयुक्त बे, ए परतंत्र, कारणने आधीन होवाथी, १० व्यक्त; तेवीज रीतें महदादि व्यक्त बे; प्रकृति तेनाथ विपरीत, सुगम बे. या अपमात्र स्वरूप बतावेल बे, विस्तारथी जाणवुं दोयतो सांख्य सप्तति यदि शास्त्रो जोवां. 66 हवे पचशमा पुरुष तत्वनुं स्वरूप कहियें बियें. पुरुष " कर्त्ता विगुणोजोक्ता, नित्यचिदन्युपेतश्च" बे. पुरुषतत्व श्रात्माने कहे बे. १ - त्मा, विषय सुखादिनां कारण पुण्यादि करतो नथी तेथी कर्त्ता बे; कारण के आत्मा तृणमात्र पण तोडवाने समर्थ नथी; छाने कर्त्ता प्र कृति, कारण के प्रकृतिमां प्रवृत्तिखनाव बे; तथा २ “ विगुणः " सवादिगुणरहित, कारण के सत्त्वादि प्रकृतिना धर्म बे, तथा ३ " जो
SR No.010519
Book TitleJain Tattvadarsha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
PublisherAtmaram Jain Gyanshala
Publication Year1899
Total Pages369
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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