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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवाँ भाग अवयव से नाम अवलित प्रतिलेखना प्रमाण विषय वोल भाग पृष्ठ अवन्दनीय साधु पाँच ३४७ १ ३५७ भाव ह अ ३ निगा ११०७-८ पृ ५१६ प्रवद्वा २गा. १०३-२३ अनु सू१३० ठा ६ उ. ३ सू ५०३, उत्त ७१६ ३ ३६८ ४४८ २५३ का जानकार होना साधु के लिये आवश्यक है अवसर्पिणी अवसर्पिणी काल के छः भरे अ. २६ गा २५ अवसन्न सार ३४७ १ ३५८ भाव ६ अ. ३ निगा ११०७-८ ५१६ प्रवद्वा. २गा १०६-८ अवसर आदि नौ बातों ६४१ ३२१२ भाचा श्रु १ अ २३५ सू८८ २७ ३३ १ २२ ४३० २ २६ ठा० २३० १ सू० ७४ ज वक्ष २, ६ ३४६२, भ श ७ उ. ६सू २८७-२८८ सू७७२ ६७८ ३ २६७ ठा १० उ ३ ५६ १ ४१ रत्ना परि व्यवस्था दस अवान्तर सामान्य श्रवाय २००१ १५६ अविनीत के चौदह लक्षण ८३५ ५३० अविरत सम्यग्दृष्टि गुण० ८४७ ५ ७४ अविरति आश्रव २८६ १२६८ ठा ५.२ सु. ४१८, सम. ५ अविरुद्धानुपलब्धि हेतु ५५६ २२६८ रत्ना परि ३६५-१०२ के सात भेद ७ सृ १६ ठा ४ उ४ सू ३६४ उत्त.. ११गा. ६-६ कर्म भा २ गा, २ अविरुद्धोपलब्धि रूप ४६५२१०४ रत्ना. परि. ३ सू.६८-८२ हेतु के छः भेट अवैदिक दर्शनों की सत्रह ४६७ २ २२३ बातों से परस्पर तुलना
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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