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________________ श्री जैन सिद्धान्त घोल संह, आठवाँ भाग ३२१ विषय . बोल भाग पृष्ठ प्रमाण साधु का पॉच कारणों से ३३८ १ ३४८ ठाउ.२सू ४१५ राजा के अन्तःपुर में प्रवेश साधुकास्वरूप बतानेवाली८६२ ५ १५२ उत्तम.१५ सभिक्खु श्र०की१६गाथाएं साधुका स्वरूप बतानेवाली६१६ ६ १२६ दश. अ १० सभिक्खु अ की२१गाथाएं साधुकीअवग्रहप्रतिमासात५१८ २ २४८ श्राचा श्रु.२चू.१अ उ २ साधु की इकतीस उपमाएं ६६२ ७ ४ प्रश्न सवरद्वार ५ २६,उव सू १७ साधु की बारह उपमाएं ८०५ ४ ३०६ अनु सू.१५० गा १३१ साध की बारह पडिमाएं ७६५ ४ २८५ सम.१२,भ श २उ १,दशाद ७ साधु की समाचारी दस ६६४ ३ २४६ भ.श २५७ ७ सू८०१,ठा १० उ ३सू७४६, उत्तप्र.२६ गा २-७,प्रवद्वा १०१गा ७६०-६७ साधु के अठारह कल्प ८६० ५ ४०२ सम १८, दश अ ६ गा८-६६ साधुके आहारग्रहणकरने ६६३ ३ २४२ प्रव द्वा ६ ७ गा ५६८,पि नि गा के दस दोष ५२०, ध अधि ३श्लो २२ टी पृ.४२,पचा १३गा २६ २साधके आहारसंबंधी१००० ७ २६५ पि नि गा ६६६ सैंतालीस दोष साध के इक्कीस शवल दोष ११३ ६ ६८ सम २१, दशा द २ साधु के उतरने योग्य तथा १२३ ६ १७० भाचा श्रु २८ १म २उ २ अयोग्य स्थान तेईस १ मकान,वस्त्र, पात्र भादि वस्तुएं लेने में विशेष प्रकार की मर्यादा धारण करना । २ आहार के सैंतालीस दोषों में एक दायक दोष है । इसके चालीस भेद है । वे ४० भेद श्री जैन सिद्धान्त बोल सग्रह के तीसरेभाग के बोल नं. ६६३ में दिये गये हैं।
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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