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________________ श्री जैन सिद्धान्त घोल संग्रह, अाठवाँ भाग २५१ विपय बोल भाग पृष्ट प्रमाणा मनःपर्यय दर्शन नहीं हैफिर९८३ ७ १०५ न०सू,१८टी ,विशे गा ८१५ मनःपर्ययज्ञानी अनन्त प्रदेशी स्कन्ध जानता और देखता है यह कैसे कहा ? मनापर्याप्ति ४७२ २ ७८ पन.प १सू १२टी ,भ श.३२ १सू १३.,प्रव द्वा २३२,कर्म भा १गा ४६ मन:पुण्य ६२७ ३ १७२ ठाउ ३ मू ६७६ मनःशिला पृथ्वी ४६५ २ ६६ जी प्रति ३सू १०१ मनकेदसदोपसामायिकके७६४ ३ ४४७ शिक्षा मन विनय ४९८ २ २३० उव सू २०,भ श २५७.५ सू. ८०२,ठा ७उ ३सू ५८५, ध. अधि ३श्लो ५४टी पृ.१४१ मन विनय (अप्रशस्त) के ७६१ ४ २७५ उव सू २१ बारह भेद मनविनय (अप्रशस्त)सात ५०० २ २३१ । भ श २५२.१सू८.२ का ७ मन विनय (प्रशस्त) सात ४६४ २ २३१ । उ ३सू.५८५, उव सू २० मनुष्यप्रायुबन्धके४कारण१३४ ११०० ठा ४३ ४ सू ३७३ मनुश्य के छः प्रकार ४३७ २४१ ठा ६उ ३ सू ४६० मनुष्य के तीन भेद ७१ १ ५१ ठा ३उ १८ १३०,पन प १सू ३७,जी.प्रति ३सू १०७ मनुष्य के तीनसो तीन भेद६३३ ३ १७६ पन प.१,उत्तम ३६,जी प्रति ३ मनुष्य क्षेत्र छः ४३६ २ ४१ य उ ३ सू.४६० मनुष्य भवादि११दुर्लभ७७२ ४ १७ याच ह नि गा८३११ ३४१ मनुप्यभवथादि ४अगोंकी:०६ ६ २६ उत्त प्र.३ दुर्लभतावतानेवालीवीसगाथा
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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