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________________ २५० श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला विषय प्रमाण घोल भाग पृष्ठ *मध्यग्रामकी मूर्छनाएं५४० २ २७३ अनुसू१२७१ ४० ला ७ ५३३ ४११ १ ४३७ ठा ५३.३ ४५३ १ मध्यचारी भिक्षु . मध्यचारी मच्छ ४१० १ ४३७ ठाउ १४५३ ५४०२ २७१ अनुसृ. १२७ २५ ३६१ ४६३, कर्म मा १ मध्यम स्वर मन:पर्ययज्ञान टाउ ३ गा ४, न० सु. १ मन:पर्ययज्ञान का विषय ६८३ ७ १०४ विशे० मा ८१२ ८१४ ३७५ १ क्या है ? मन:पर्ययज्ञान की अवधि ६१ ६ १३७ भग १३ उटी, तस्वार्थ ज्ञान से विशेषता मन:पर्ययज्ञानकी व्याख्या, भेद१४ ११२ सध्या १२‍ व १ सृ.७१ १७ १ केप में २ द्वीप में हुए मन:पर्ययज्ञान के लिये ६२६ ३ १७२ २० यावश्यक नौ बातें ६ मन:पर्ययज्ञान साकारी- ७८६ ४ २६८ ११०१२६३१२ पयोग मन:पर्ययज्ञानावरणीय मन:पर्यय ज्ञानी जिन ७४ १ ५३ ३७८ १३६४४४६४१ ट.३ड.४२२० श्री जनसिद्धान्त चाल संग्रह भाग २ दृष्ट २७३ पर मध्य ग्राम की मात सुनाए छपी है वे गीत गा नामक ग्रन्थ में ली हुई हैं। अनुयोगद्वार तथा ग्यानाग सूत्र में सभ्य ग्रामी नामों के नाम दूसरी तरह है। उनकी गाथा सप्र हैतरमंदा रयणी, उतरा उत्तरासमा 1 समोक्ता य सोवीरा, अभिरूवा होइ सत्तमा || अर्थ- उत्तग्मदा, रत्ना, उत्तरा, उत्तरागमा, समाना, सांग और अभिया । ५४३ लेने वाला श्रमिमदवारीमा | पंचेन्द्रिय जीवों के मनोगत जाना।
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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