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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आठवाँ भाग २०३ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण परपाषंडी प्रशंसा २८५ १ २६५ | उपा असू ७, प्राव ह अ परपाषंडी संस्तव २८५ १ २६५ ६१८१० परमाणु ६१३ ठा १सू ४५ परमाणु ७३ १ ५३ ठा ३उ २ सू १६५ । परमात्मा १२५ १६० परमा गा १५ परमाधार्मिक देव पन्द्रह ५६० २ ३२४ प्रव.द्धा १८०गा १०८५-१०८६ परमाधार्मिक पन्द्रह ८५६ ५ १४३ सम १५ परमावधिज्ञानी क्या चरम १८३ ७ १०३ भ ग ७३ ७ सू.२६१ । शरीरी होते हैं ? परमेष्ठी पाँच २७४ १ २५२ भ मगलाचरण परम्परागम ८३ १६१ अनुसू १४४, । परलोक विपयमेंगणधर७७५ ४ ५४ विशे गा १६४६-१६७१ मैतार्यस्वामीकाशंकासमाधान परलोक नास्तित्ववादी ५६१ ३ ६४ ठा ८उ ३ मू ६०७ परलोक भय ५३३ २ २६८ ठा ७७ ३सू ५४६,सम ७ . परविस्मयोत्पादन ४०२१ ४३० उत्त य ३६गा २६१,प्रव द्वा ७३ पर सामान्य ५६ १४१ रत्ना परि ७ सू. १५,१६ परार्थानुमान ३७६ १ ३६६ रत्ना परि ३ सृ. २३ परार्थानुमान के पाँच अङ्ग३८० १ ३६६ रत्ना परि ३,न्यायदी प्रमा.३ पगवर्तमान प्रकृतियाँ ८०६ ४ ३५१ कर्म भागा १-16 परिकर्मोपघात ६६८ ३ २५५ ठा १०उ ३ स ७३८ परिकंचना प्रायश्चित्त २४५ख१ २२४ ठा ४उ १ २६३ ' परिक्रम संख्यान ७२१ ३ ४.४ ठा १०उ ३८ ७४७ ४६ १ २६ ठा २ १ सू ६४ परिग्रह
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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