SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, आउवों भाग विषय बोल भाग पृष्ठ छ: अप्रमाद प्रतिलेखना ४४८ २५२ छ: अमशस्त वचन ४५६ २६२ छ: आगार पोरिसी के छः आगार समकित के प्रमाण ठा ६५०३, उत्त २६गा २५ ठा ६ उ. ३५२७, प्रवद्वा २३५गा १३२१,बृ(जी) उ ६ श्राव ह० ६८५२, प्रवद्वा ४ उपा ८१०, अधि २श्लो. २२५.४१ १८, आव ह थ . ६ पृ छः आभ्यन्तर तप छः आरे अवसर्पिणी के ४३०२२६ जवक्ष २सू १६-३६, टा ६ उ ३ ४७८ २ ८६ उव सू २०, उत्तम. ३०गा ३०, प्रवद्वा ६गा २७१,ठा ६सू ५११ छः प्रारे उत्सर्पिणी के सु४ε२,भश ७३. ६ सू २८७ ज वक्ष २सू ३७-४०, उा ६ उ ३ सू४६२, विशे गा २७०८-१० आव ६. छः आवश्यक छः इत्वरिक अनशन उत्तम ३० गा ६-११ अनु सू ७० ठा ६उ ३ सू५२३ वृ हो छः उपक्रम छः ऋतुएं श्रार्य छः ऋद्धि प्राप्त छः कर्त्तव्य श्राचार्य के १ छः कल्प पलिमन्यु छ: कल्पस्थिति छःकाय ४८३ २६७ ४५५ २ ५८ ४७६ २६० ४७७२८७ ४२७ २ २५ ४३२ २ ४० ४३८ २ ४२ ४५१ २ ५५ ४४४ २ ४७ ४४३ २ ४५ ४६२ २६३ छः काय का अल्पबहुत्व ४६४ २ ६५ छः काय की कुलकोटियाँ ४६३ २६४ १ कल्प यानी साधु के आचार का मन्थन अर्थात् घात करने वाले । . ४३१ २ ३५ १३३ ठा ६४६ १, पन्न. प १ सू ३७ ठा ७३ सू ५७० टी ठा ६उ ३५२६, वृ (जी) उ ६ ठा ३३४ सू २०६,ला. ६उ ३ सू५३०, वृ (जी) उ ६ ठा ६उ ३ सू ४८०, दश प्र ४, कर्म भा ४गा. १० जी प्रति २६२,पन्न प ३ द्वा ४ प्रवद्वा १५० गा ६६३-६६७
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy