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________________ ११६ श्री मेठिया जैन ग्रन्यगाला विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण चक्रवर्ती की सन्तान ७८३ ४ २६४ र प्र२३१३ चक्रवर्ती के एकेन्द्रिय रत्न ७८३४२६३ा ७ उ ३ . ५५८ चक्रवर्तीके पकेंद्रिय रत्न सात५२८ २ २६५ टा. ७३३४५८ चक्रवर्ती के चौदह रत्न ८२८५ २. सम १४,७३५३ चक्रवर्ती के पंचेन्द्रिय रत्न ७८३४२६३ टा ७ ३ ३ . ५४८ चक्रवर्ती के पंचेन्द्रिय रत्न ५२८ २ २६५ ०.७.३ . ४४८ चक्रवतीं चारह ७८३ ४ २६० टा. ११२, ४४८,६१३, मम ६४,६६, १ च २.२२ टी, आव ह. भ. १,३९२०४०१ त्रि. पदर प्रफा २,३५१३, २० चक्रवर्ती वारह भागामी ७८४४२६५ नम. १५६ उत्सर्पिणी के चक्रवर्ती लब्धि १ चक्रवाल श्रेणी ६५४ ६ २६४ प्रय. हा ९७० मा १४६ १ ५४४ २ २६४७.४८१, भ २३. ३० चचदर्शन १६६ ११५७ टा ३६१६ चक्षुदर्शन अनाकारोपयोग७८६ ४२६८ ११.२३. सु. ३१२ चक्षुदर्शन की तरह श्रोत्रादि ६८३ ७ १०६ दर्शन क्यों नहीं कहे गये ? १.३३७ टी. चतुरिन्द्रिय ३६२१४१८ ११६१. उ. प्र. 21.3.2013 ४४४ २ ४८ 2288 उम् चतुलोलुप चण्डकौशिक सर्प कीपारि २१५ ६ ११४१०,नं-२७णा ७८, लामिकी बुद्धि पर कया भाव ए. दि १ देशों की यह जिसके द्वारा माणु भादिवार गाए दी है।
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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