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________________ श्री सेठिया जैन अन्धमाला ग्राम धर्म विपय बोल भाग पृष्ट प्रमाण 1 ग्रहणपणा के दम दोप ६६३ ३ २४२ प्रवदा ६७ १ १६८,पिं.नि गा १२०, मधिरता २२ टी ४१,पचागा .२६ ६६२ ३ ३६१ या १० २.३ स.. ग्राम नगर श्रादि दम धम६६२ ३ ३६१ टा १० उ: ६. ग्रामादि सोलह स्थान साधु-६७ ५ १६६ वृ. 3 १२५ के लिए कल्पनीय ग्रामेयफ(ग्रामीण)कादृष्टान्त७८०४ २४५ मावर नि. गा १३३ पृ८८, वचन अननुयोग पर धृ. पीटिका नि.गा १" ग्रामपणा (परिभोगेपणा) ६३ १ ६७ उत्ता. २४ गा.११-१२ ग्रासपणा के पाँच दोष ३३० १ ३३६ धमधि ३लो २३टी ..पि. नि.गा ६५-६६८,त्त अ.२४ गा.१२टी ,उत्तम.२६ गावटी ग्लान भतिचारी बारह ७६७४ २६७ प्रदा,७१गा १२६६३६, और अड़तालीस नवपद गा.१२६१.३१६ ग्लानकी सेवा करना माधु-३ ७ १०८ नि. गा.१८७१, १८७२, फैलिये श्रावश्यक है या १८७१,८८, २५३.' उसकी इच्छा परनिर्भर है? ...आम २६,,मो. गा.५८,६,१२,१३२,५३३ ग्लान साधु की सेवा करने ७६७४ २६७ प्रपद्वा...१२ १३६, वाले बारह गमगा 12 चन नर घन मंग्यान ४७७ २ ८ रा.म.१०गा.. ७२१ ३१०६ टा 1.2.५४, न पापों में एटा दास भोप है, उन नास भेद हैं।
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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