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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, पाठवा भाग १११ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण गणस्थानों में गण द्वार ८४७ ५ १०८ गुण यो. गणस्थानों में चारित्र द्वार ८४७ ५ ११२ गुण थो. गुणस्थानों में जीव द्वार ८४७ ५ १०८ गुण गण में जीव योनि द्वार ८४७ ५ १११ गुण थो. गुणस्थानों में दण्डक द्वार ८४७ ५ १११ गुण थो. गुणस्थानों में ध्यान द्वार ८४७ ५ १११ गुण. थो गणस्थानों में निमित्त द्वार८४७ ५ ११२ गुण थो. गुणस्थानों में निजेरा द्वार ८४७ ५ १०६ गुण थो. गणस्थानों में परिषहद्वार ८४७ ५ १०७ गुण, थो गणस्थानों में भाव द्वार ८४७ ५ १०७ गुण थो गणस्थानों में मागेणाद्वार ८४७ ५ ११० गुण थो गुणस्थानों में योग द्वार ८४७ ५ १०६ गुण थो. गुणस्थानों में लेश्या द्वार ८४७ ५ १०६ गुण, गणस्थानों में समकितद्वार८४७ ५ ११२ गुण गणस्थानों में स्थिति द्वार ८४७ ५ १०५ गुण गणस्थानों में हेतु द्वार ८४७ ५ ११० गुण थो. गप्ति . २२ १ १६ उत्त अ २४ गा २ गप्ति की व्याख्या औरभेद१२८ख १२ उत्तय २४गा २०-२५,ठा : उ१ सू १२६ ६३ १४४ यो.प्रका २ श्लो. गुरु निग्रह आगार ४५५ २ ५६ उपा अ १८, भाव ह म.६१ ८१०,ध मधि २लो २२पृ ४१ गरुप्रत्यनीक ४४५ २ ४६ भश ८ ८ स ३३६ गर्वभ्युत्थान प्रागार ५१७ २ २४७ प्राव इ.स. ६६५३, प्रव. द्वा ४ गा । २०४. गरु
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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