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________________ श्री जैन सिद्धान्त वोल संग्रह, पाठवा भाग १०६ विषय बोल भाग पृष्ठ प्रमाण गण इक्कीस श्रावक के ६११ ६ ६१ प्रव. द्वा २३६ गा. १३५६ १३५८,ध अधि १श्लो.२०१२८ गुण के दो प्रकार से दो भेद ५५ १ ३२ सूय अ १४ नि गा.१२६,पचा ५गा २टी.,द्रव्य त अध्या.१२ गुण छ: गण को धारण ४५० २ ५४ ठा. ६ उ ३सू.४७५ करने वाले के गण छः श्रावक के ४५२ २ ५६ धर प्रक गा ३३ पृ८२ गुण३६आचार्यमहाराजके९८२ ७ ६४ प्रव द्वा ६४ गा ५४१-५४६ गुण दस आलोचना करने६७० ३ २५८ भ. श २५ उ.७ सू ७६६, योग्य साधु के ठा.१० उ.३ सू ७३३ गुण दस आलोचना देने ६७१ ३ २५६ भ श २५उ ७ सू ७६६, योग्य साधु के ठा १० उ ३ सू ७३३ गुण पचीस उपाध्याय के १३७ ६ २१५ प्रवद्धा ६६-६७गा ५५२-५६६, ध.अधि ३श्लो ४६-४७पृ १३० गुण१५दीक्षादेनेवालेगुरुके८५१ ५ १२४ ध अधि ३श्लो.८०.८४१ ५ गुण पैंतीस गृहस्थ धर्म के १८० ७ ७४ यो प्रका.१श्लो ४७-५६५५० गुण प्रकाश के चार स्थान २५६ १ २४४ ठा ४३ ४ सू ३७० गुण१२ अरिहन्त देव के ७८२ ४ २६० सम.३४,म श द्वा.६६,स्या का १ गुण रत्न संवत्सर तप ७७६४ २०० प्रत व ६ अ १५ गुण लोप के चार स्थान २५८ १ २४३ ठा. ४ उ ४ सू. ३७० गुणव्रत की व्याख्या,भेद १२८१ ११ भाव ह.भ६१८२६.८२६ गणव्रत तीन ४६७ २ २०० गणश्रेणी ८४७ ५ ७६ कर्म भा २ गा. २ गुण संक्रमण ८४७ ५ ७६ कर्म भा. २ गा. २
SR No.010515
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1945
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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