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________________ भी सैठिया जैन ग्रन्थमाली - इतना ही नहीं बल्कि सेवा न होने से ग्लान साधु को जो परिताप आदि होते है उनके लिये भी वह प्रायश्चित्त का भागी होता है। सोऊग ऊ गिलाणं पंथे गामे य भिरखवेलाए । जइ तुरियं नागच्छा लग्गइ गरुए स चउम्मासे॥१८७२॥ भावार्थ-रास्ते में ज ते हुए, गाँव में प्रवेश करते हुए अथवा गोचरी में फिरते हुए माधु को यदि किसी मुनि की ग्लानावस्था की सूचना मिले और वह तुरन्त ही उसके पास न पहुँचे तो उसे गुरु चौमासी प्रायाश्चत्त अाता है। सधु की ग्लानावस्था की खबर पाकर जो साधु उसकी उपेक्षा करता है उसे भी प्रायश्चित्त बतलाया है।। जो उ उवेह कुज्जा लग्गइ गुरुए सवित्थारे ॥१८७५॥ __ जो साधु की ग्लानता सुन कर भी उसकी उपेक्षा करता है उसे सविस्तः गुरु चौमासी प्रायश्चित्त आता है। __उत्तगध्ययन सूत्र के छब्बीसवें समाचारी अध्ययन में साधु की दिनचर्या वतलाई है। उसमें वैयावृत्त्य विषयक जो गाथाएं दा हैं उनस भी यहा मालूम होता है कि वैधावृत्य साधु के लिये आवश्यक वत्तव्य है और स्वाध्याय से भी प्रधान है । गाथाएं इस प्रकार हैंपुश्विल्लभि चउत्भएर, आइचम्मि समहिए । भंडयं पडिलेहित्ता, बंदित्ता य तओ गुरुं ।। पुच्छिजा पंजडिओ, किं कायव्वं मए इहं । इच निओइड भैते, वेयावच्चे व सज्झाए । वेयावचे निउत्तणं, कायब्वमगिलायओ ॥ ___ भावार्थ सूर्योदय होने पर पहली पहर के चौथे भाग में वस्त्रपात्रादि की प्रतिलेखा करे और गुरु यो वन्दना करके हाथ जोड़ कर यह पूछे कि भगवन् ! मुझे क्या करना चाहिये ? आप चाहे वो मुझे वैयावृत्य में लगा दीजिये अथवा स्वाध्याय में गुरुदेव.
SR No.010514
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2053
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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