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________________ १ ।। श्री सेठिया जैन अन्यमाला में अरिहन्त ही सभी अर्थ बतलाने वाले हैं। इस प्रकार नमस्कार सत्र में जो सर्व प्रथम अरिहन्त को नमस्कार किया गया है वह सभी के लिये युक्त ही है। आचार्य तो अरिहन्त की सभा के सभ्य रूप हैं उन्हें अरिहन्त से पहले नमस्कार कैसे किया जा सकता है। (भगवती मंगलाचरण टीका) (विशेषावश्यक भाष्य गाथा ३२१०-३२२१) । (३) प्रश्न-नमस्कार उत्पन्न है या अनुत्पन्न ? यदि उत्पन्न होता है तो उसके उत्पादक निमित्त क्या हैं ? , उत्तर-नमस्कार की उत्पत्ति के सम्बन्ध में सभी नय एकमत नहीं हैं। कोई नमस्कार को अनुत्पन्न (शाश्वत) और कोई उसे उत्पन्न मानते हैं । सर्वसंग्राही नैगम नय का विषय सामान्य है और वह उत्पाद और विनाश से रहित है इस नय के अनुसार सभी वस्तुएं सदा से हैं। न कोई वस्तु नई उत्पन्न होती है और न नष्ट ही होती है। इसलिये इस नय की अपेक्षा नमस्कार अनुत्पन्न है। मिथ्यादृष्टि अवस्था में भी यह नय द्रव्यरूप से नमस्कार का अस्तित्व मानता है। यदि ऐसा न माना जाय तो नमस्कार फिर उत्पन्न ही न होगा क्योंकि सर्वथा असत् वस्तु की उत्पत्ति नहीं होती । शेष विशेषवादी नयों का विषय विशेष है और वह उत्पाद विनाश धर्म वाला है। इन नयों की अपेक्षा उत्पाद और विनाश रहित वस्तु वन्ध्यापुत्र की तरह असद्रूप है । इसलिये ये नय नमस्कार को उत्पन्न मानते हैं। जो वस्तु उत्पन्न होती है उसके उत्पादक निमिच भी होते हैं। नमस्कार के तीन निमित्त हैं-समुत्थान (शरीर), वाचना और लब्धि । अविशुद्ध नैगम, संग्रह और व्यवहार-इन तीन नयों की अपेक्षा नमस्कार के ये तीन निमित्त हैं। ऋजुसूत्र नय वाचना और लन्धि दो ही निमित्त मानता है क्योंकि देह के होते हुए भी वाचना और लब्धि के अभाव में नमस्कार रूप कार्य की उत्पति
SR No.010514
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2053
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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