SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, सातवाँ भाग ५३ वाला (११) अप्रिय मित्र की भी पीठ पीछे बुराई न कर उसके गुणों की प्रशंसा करने वाला (१२) कलह और डमर (प्राणीपात आदि) का त्याग करने वाला (१३) कुलीन (१४) लज्जावान् (१५) प्रतिसंलीन-इन्द्रियों का गोपन करने वाला । इन गुणों से युक्त तच का जानकार मुनि विनीत कहलाता है। (१४) जो शिष्य धार्मिक व्यापारों में दचचित्त रह कर गुरु कुल में रहता है, शास्त्र सीखते हुए यथायोग्य आयंबिल आदि उपधान तप करता है तथा दूसरों के अप्रिय बोलने एवं अप्रिय करने पर भी उनसे प्रिय बोलता है तथा उनका प्रिय करता है वह शिक्षा प्राप्त करने योग्य है। (१५) जिस प्रकार शंख में रहा हुआ दूध दोनों प्रकार से यानी अपने माधुर्यादि गुणों से तथा आधार पात्र के गुणों से शोभा पाता है उसी प्रकार बहुश्रुत भिक्षु में धर्म कीर्ति और श्रुत्रज्ञान भी दोनों प्रकार से शोभा पाते हैं। (१६) जैसे कम्बोज देश के घोड़ों में आकीर्ण जाति का घोड़ा अतिशय वेग वाला होता है और वह उनमें प्रधान माना जाता हैं उसी तरह बहुश्रुत भी अन्य धार्मिक जनों की अपेक्षा श्रुत शील आदि गुणों से श्रेष्ठ अतएव उनमें प्रधान होते हैं। (१७) जैसे आकीर्ण जाति के उत्तम बोड़े पर आरूढ़ हुआ दृढ़ पराक्रमी शूरवीर दोनों ओर वाघध्वनि एवं जयघोप से शोभित होता है एवं वह तथा उसके आश्रित शत्रुओं से अभिभूत नहीं होते। इसी प्रकार बहुश्रुत भी दिन रात साध्याय ध्वनि एवं स्वपर पक्ष की जय नाद से शोभित होते हैं तथा वे और उनके आश्रित बाद में अन्यतीर्थियों द्वारा पराजित नहीं होते। (१८) जैसे हथिनियों से घिरा हुआ, साठ वर्ष की उम्र का हाथी महाबलवान होता है एवं मदवाले भी दूसरे हाथी उसे हरा नहीं
SR No.010514
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2053
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy