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________________ श्री जैन सिद्धान्त वोल संग्रह, सातवां भाग २९ में स्वाध्याय के पाँचों ही प्रकारों का निषेध है ? स्थानांग सूत्र के चौथे स्थान की टीका में इसका कुछ स्पष्टीकरण मिलता है । वह इस प्रकार है-'स्वाध्यायो नन्वादिसूत्रविषयो वाचनादिः, अनुप्रेक्षा तु न निपिध्यते' अर्थात् यहाँ स्वाध्याय से नन्दी आदि सूत्र की वाचना वगैरह समझना, अनुप्रेक्षा की मना नहीं है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि अस्वाध्याय में सूत्रागम के पठन पाठनादि का निषेध है, उसके अर्थ के चिन्तन मनन के लिये मना नहीं है। भगवती सूत्र में कहा है कि देवताओं की भापा अर्द्धमागधी है। सूत्रों की भी यही भाषा है। सूत्रों के देववाणी में होने तथा देवाधिष्ठित होने के कारण अस्वाध्याय को टालना चाहिये। अस्वाध्याय के प्रकारों में से कई एक व्यन्तर देव सम्बन्धी हैं। उनमें स्वाध्याय करने से उनके द्वारा उपसर्ग होने की संभावना रहती है । कई अस्वाध्याय ऐसे हैं जो देवकृत भी होते हैं और स्वाभाविक भी होते हैं । स्वाभाविक होने पर वे अस्वाध्याय रूप नहीं होते । पर वे स्वाभाविक हैं यह मालूम होना कठिन है । इसलिये शास्त्रकारों ने उनका सामान्यतः परिहार करने के लिये कहा है। कुछ अस्वाध्याय संयम रक्षा के ख्याल से कहे गये हैं, जैसे धूवर, आँधी आदि । रक्क मांस या अशुचि के समीप स्वाध्याय करना लौकिक दृष्टि से घृणित है तथा देवभाषा की अवहेलना होने से देवता भी कष्ट दे सकते हैं। किसी बड़े आदमी की मृत्यु होने पर या आसपास किसी की मृत्यु होने पर स्वाध्याय करना व्यवहार में शोभा नहीं देता । लोग कहते हैं कि हम लोग दुःखी हैं पर इन्हें हमारे प्रति कोई सहानुभूति नहीं है। राजविग्रह आदि से अशान्ति होने पर मन के अस्थिर होने की सम्भावना रहती है, लोग दुःखी होते हैं इसलिये ऐसे समय स्वाध्याय करना भी लोक विरुद्ध है। उपरोक्त कारणों से तथा ऐसे ही अन्य.
SR No.010514
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2053
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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