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________________ श्री सेठिया जैन गन्थमाला ६६८-बत्तीस अस्वाध्याय सम्यक रीति से मर्यादा पूर्वक सिद्धान्त में कहे अनुसार शास्त्रों का पढ़ना स्वाध्याय है । जिस काल अथवा जिन परिस्थितियों में शास्त्र पढ़ना मना है वे अस्वाध्याय हैं । आत्मविकास के लिये की जाने वाली क्रियाओं में स्वाध्याय का स्थान बड़े महत्त्व का है । स्वाध्याय का असर सीधे आत्मा पर पड़ता है । यही कारण है कि इसे प्राभ्यन्तर तय के प्रकारों में गिना गया है । इसका आचरण करने से ज्ञान की आराधना के साथ परम्परा से दर्शन और चारित्र की आराधना होती है। उत्तराध्ययन २९वें अ० में स्वाध्याय का फल बतलाते हुए कहा है-'नाणावरणिज्ज कम्मं खवेह' अर्थात् स्वाध्याय से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होता है । आगे वाचनादि स्वाध्याय प्रकारों से महानिर्जरा का होना, पुनः पुनः असातावेदनीय कर्म का बंध न होना यावत् शीघ्र ही संसार . सागर के पार पहुंचना आदि महाफल बतलाये हैं। पर यह स्मरण रहे कि समुचित वेला में स्वाध्याय करने से ही ये महान् फल प्राप्त होते हैं । जो समय स्वाध्याय का नहीं है उस समय स्वाध्याय करने से लाभ के बदले हानि ही होती है । चौदह ज्ञान के अतिचारों में 'अकाले को सज्झाओ' अर्थात् अकाल में स्वाध्याय की हो, अतिचार माना है। व्यवहार सूत्र में अस्वाध्याय में स्वाध्याय का निषेध करते हुए कहा है नो कप्पइ निग्गंथाणं वा निग्गंथीण वा असज्झाए सज्झाइयं करित्तए ____ अर्थात् साधु साध्वियों को अस्वाध्याय में स्वाध्याय करना नहीं कल्पता है । निशीथ सूत्र के उन्नीसवें उद्देशे में अस्वाध्याय में स्वाध्याय करने से प्रायश्चित्त बतलाया है। यह प्रश्न होता है कि अस्वाध्याय सूत्रागम के हैं या अर्थागम के ? और क्या अस्वाध्याय
SR No.010514
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2053
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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