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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (१०)साधु को योगों की प्रशस्तता के लिये ऋजुता-सरलता को अपनाना चाहिये। (११) शुभयोम संग्रह के लिये साधु को शुचि अर्थात् सत्य शील एवं संयमी होना चाहिये । (१२)शुभ योग संग्रह के लिये साधु को सम्यग्दृष्टि होना चाहिये। (१३) शुभ योग संग्रह के लिये साधु को समाधिवन्त अर्थात् प्रसन्न चित्त रहना चाहिये । (१४) योगों की प्रशस्तता के लिये साधु को चारित्रशील होना चाहिये, साधु का आचार पालने में माया न करनी चाहिये । (१५) इसी तरह साधु को विनम्र होना चाहिये, उसे मान का कतई त्याग करना चाहिये । (१६) शुभ योगों का संग्रह करने के लिये साधु की बुद्धि धैर्यप्रधान होनी चाहिये । उसे कभी दीन भाव न लाना चाहिये । (१७) इसी शुभ योग संग्रह के लिये साधु में संवेगभाव (संसार का भय एवं मोक्ष की अभिलाषा) होना चाहिये। (१८)योगों की श्रेष्ठता के लिये साधु को छल कपट का त्याग करना चाहिये । उसे कभी माया न करनी चाहिये। (१९) शुभयोगों के लिये साधु को सदनुष्ठान करना चाहिये। (२०) साधु को संवरशील होना चाहिये, उसे नवीन कर्मों को आत्मा में आने से रोकना चाहिये। (२१) योगों की उत्तमता के लिये साधु को अपने दोपों की शुद्धि कर उनका निरोध करना चाहिये । (२२) प्रशस्त योग संग्रह के लिये साधु को पाँचौ इन्द्रियों के अनुकूल विषयों से विमुख रहना चाहिये । (२३) शुय योग संग्रह के लिये साधु को मूल गुण विषयक प्रत्याख्यान. करना चाहिये।
SR No.010514
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2053
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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