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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (२७) जैसे लाख का घड़ा अग्नि का स्पर्श पाकर शीघ्र ही तप कर नष्ट हो जाता है, इसी प्रकार स्त्रियों के संसार में रहने से अनगार साधु भी नष्ट हो जाते है अर्थात् संयम से भ्रष्ट हो जाते हैं। ' (२८) स्त्रियों में श्रासक्त हुए कई साधु व्रत नियमों की अवहेलना कर पाप कर्म का सेवन कर लेते हैं। प्राचार्यादि के पूछने पर वे कहते हैं-मैं यह अकार्य कैसे कर सकता हूं? यह स्त्री तो मेरी पुत्री के समान है। बचपन में यह मेरी गोद में सोया करती थी। पहले के उसी अभ्यास से उसका मेरे साथ ऐसा व्यवहार है। (२९) ब्रह्मचर्य भंग रूप भारी भूल करने वाले उस अज्ञानी साधु की यह दूसरी अज्ञानता है कि पापकार्य करके भी पूछने पर झूठ बोल कर वह उसे छिपाता है । इस तरह वह दुगुने पापका भागी बनता है। लोक में अपनी पूजा के लिये पाप कार्य को छिपाने वाला वह साधु वस्तुतः असंयम का इच्छुक है। (३०)श्रात्मज्ञानी किसी साधु को सुन्दराकृति देख कर दुःशील स्त्रियाँ उसे आमन्त्रण देती हुई कहती हैं-हे रक्षक! कृपया आप हमारे यहाँ पधार कर आहार पानी पस्न पात्र लीजियेगा। (३१) स्त्रियों के इस आमन्त्रण को साधु नीवार रूप अर्थात. प्रलोभन समझे । जैसे सूअर को वश करने के लिये लोग उसे नीवार (धान्य विशेष) से ललचाते हैं उसी प्रकार स्त्रियों का यह आमन्त्रण साधु को अपने वश करने के लिये प्रलोभन रूप है। आत्मार्थी साधु को उनके घर जाने का विचार भी न करना चाहिए। शब्दादि विषय रूप जाल में फंस कर स्त्रियों के वश हुआ अज्ञानी व्यक्ति उनसे स्वतन्त्र होने में अपने को असमर्थ पाकर बार बार व्याकुल होता है। . (स्त्रकृताग सूत्र श्रुत० १ अध्य० ४ उ० १)
SR No.010514
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2053
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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