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________________ ' ' "श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (३१) परभव जाते हुए जीव की गति में जैसे कोई रुकावट नहीं होती, उसी प्रकार स्वपरसिद्धान्त का जानकार, वादादि सामर्थ्य वाला सांधु भी निःशङ्क होकर विरोधी अन्यतार्थियों के देश में धर्म-प्रचार करता हुआ विचरता है। ' ' (प्ररन व्याकरण धर्म द्वार ५ सूत्र २९) (श्रीपपातिक सूत्र १७) .६६३-सूत्रकृताङ्ग सूयगडांग) सूत्र चौथे । अध्ययन प्रथम उद्देशे की ३१ गाथाएं सूत्रकृताङ्ग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध के चौथे अध्ययन का नाम स्त्री परिज्ञा है। इसमें स्त्री द्वारा किये जाने वाले उपसर्गों का वर्णन है। ये उपसर्ग अनुकूल होने से अधिक दुःसह हैं । साधक इनके फेर में बहुत सुगमता से फंस जाता है और एक बार इनका शिकार होने के बाद वापिस साधना के मार्ग पर आना उसके लिये दुष्कर 'हो जाता है। इसीलिये सूत्रकार ने उपसर्गाध्ययन में सामान्यतः सभी उपसर्गों का वर्णन देकर भी स्त्री सम्बन्धी उपसर्गों का इस अध्ययन में स्वतन्त्र वर्णन दिया है। स्त्री परिज्ञा के प्रथम उद्देशे में सूत्रकार ने साधु को साधना के श्रेष्ठ मार्ग से गिराने वाली स्त्रियों की मायापूर्ण चेष्टाओं का विशद वर्णन किया है और बतलाया है कि किस प्रकार विद्वान् एवं क्रियाशील महात्मा उनकी मायाजाल में फंस कर अपनी दुष्कर साधना पर पानी फेर देता है एवं एकबार परवश होने के बाद पुनः स्वतन्त्र होना उनके लिये कितना कठिन हो जाता है। परस्त्री सम्बन्ध के ऐहिक भीषण परिणाम भी शास्त्रकार ने यथास्थान बतलाये हैं । इससे यह समझना कि शास्त्रकार ने यह वर्णन देकर स्त्री जाति की अवहेलना की है, उसके (शास्त्रकार के) साथ अन्याय करना है। स्त्रियों के दुश्चरित्र से साधक को सावधान करना ही शास्त्रकार का उद्देश्य है, जिसका (दुचरित्र का)
SR No.010514
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2053
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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