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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला भावार्थ-जो पुरुष स्वाध्याय, संयम, तप, वैयावृत्त्य तथा धर्मध्यान में रत रहता है और असंयम से विरत रहता है वह मोक्ष प्राप्त करता है। (दशवैकालिक नियुक्ति गाथा ३६६) अरई आउद्दे से मेहावी, खणंसि मुक्के ॥३॥ भावार्थ-संसार की असारता को जानने वाला साध संयम विपयक अति को दूर करे। ऐसा करने से वह अल्प काल में ही मुक्त हो जाता है। (श्राचाराग दूसरा अध्ययन दूसरा उद्देशा सूत्र ७१) नारइं सहई वीरे, धीरे न सहई रई । जम्हा अविमणे वीरे, तम्हा वीरे न रजइ ॥४॥ भावार्थ-धीर साधु संयम विषयक अरति एवं विषय परिग्रह सम्बन्धी रति को अपने मन में स्थान नहीं देता। उक्त रति अरति से निवृत्त होने के कारण वह शब्दादि विषयों में मूञ्छित नहीं होता। (श्राचारांग दूसरा अध्ययन छठा उद्देशा सूत्र ६६ ) अरइं पिट्टओ किच्चा, विरए आयरक्खिए । धम्मारामे निरारंभे, उवसंते मुणी चरे ॥५॥ भावार्थ-यदि कभी मोहवश साधु को संयम में अरति उत्पन्न हो तो उसे उसका तिरस्कार कर देना चाहिये। हिंसादि से निवृत्त एवं दुर्गति से आत्मा की रक्षा चाहने वाले साधु को धर्म ही में रत रहना चाहिये। उसे प्रारम्भ तथा कषाय का त्याग करना चाहिये । ___ (उत्तराध्ययन दूसरा अध्ययन गाथा १५) वालाभिरामेसु दुहावहेसु, न त सुहं कामगुणेसु रायं । विरत्तकामाण तवोधणाण.जंभिक्खूणं सीलगुणे रयाणं भावार्थ-हे राजन् ! बालमनोहर दुःखावह इन कामगुणों
SR No.010514
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2053
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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