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________________ श्री जन सिद्धान्त बोल संग्रह, छठा भाग भी न हो । दीर्घपृष्ठ ने कहा-इसका एक उपाय है और वह यह है कि कुमार का विवाह शीघ्र कर दिया जाय । कुमार के निवाम के लिए एक लाक्षागृह (लाख का घर) वनवाया जाय । जर कुमार उसमें सोने के लिये जाय तो रात्रि में उस महल को आग लगा दी जाय । जिससे वधू सहित कुमार जल कर समाप्त हो जायगा। कामान्ध बनी हुई रानी ने दीर्घपृष्ठ की बात स्वीकार कर ली। तत्पश्चात् उसने एक लाक्षागृहतय्यार करवाया। फिर पुष्पचूल राजा की कन्या के साथ कुमार ब्रह्मदत्त का विवाह परमाया । जब धनु मन्त्री को दीर्घपृष्ठ और चलनी के पड्यंत्र का पता चला तो उसने दीर्घपृष्ठ से आकर निवेदन किया-स्वामिन् ! अब में वृद्ध हो गया हूँ। ईश्वर भजन कर शेष जीवन व्यतीत करना चाहता हूँ। मेरा पुत्र वरधनु अब सब तरह से योग्य हो गया है, वह आपकी सेवा करेगा। इस प्रकार निवेदन कर धनु मन्त्री गंगा नदी के किनारे पर आया। वहाँ एक बड़ी दानशाला खोल कर दान देने लगा। दान देने के बहाने उसने अपने विश्वसनीय पुरुषों द्वारा उस लाक्षागृह में एक सुरंग बनवाई। इसके पश्चात् उसने राजा पुष्पचूल को भी इस सारी बात की सूचना कर दी। इससे उसने अपनी पुत्री को न भेजकर एक दासी को भेज दिया। रात्रि को सोने के लिये ब्रह्मदत्त को उस लाक्षागृह में भेजा। ब्रह्मदत्त अपने साथ वरधनु मन्त्रीपुत्र को भी ले गया । अर्ध रात्रि के समय दीर्घपृष्ठ और चुलनी द्वारा भेजे हुए पुरुषने उस लाक्षागृह में आग लगा दी आग चारों तरफ फैलने लगी । ब्रह्मदत्त ने मन्त्रीपुत्र से पूछा कि यह क्या बात है ? तब उसने दीर्घपृष्ठ और चुलनी द्वारा किये गये पड्यन्त्र का सारा भेद बताया और कहा कि आप घबराइए नहीं। मेरे पिता ने इस महल में एक सुरङ्ग
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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