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________________ 'श्री-सेठिया जैन ग्रन्थमाला की रक्षा करता था। मन्त्री के पुत्र का नाम वरधनु था । ब्रह्मदत्त और वरधनु दोनों मित्र थे। राजा दीर्घपृष्ठ और रानी चुलनी के अनुचित सम्बन्ध का पता मन्त्री को लग गया। उसने ब्रह्मदत्त को इस बात की सूचना की तथा अपने पुत्र वर बनु को सदा राजकुमार की रक्षा करने के लिये आदेश दिया । माता के-दुश्चरित्र को सुन कर कुमार ब्रह्मदत्त को बहुत क्रोध उत्पन्न हुआ। यह बात उसके लिये असह्य हो गई। उसने किसी उपाय से उन्हें समझाने के लिये सोचा । एक दिन वह एक कौआ और एक कोयल को पकड़ कर लाया । अन्तःपुर में जाकर उसने उच्च स्तर में कहा- इन पक्षियों की तरह जो वर्णशंकरपना करेंगे, उन्हें मैं अवश्य दण्ड दूंगा। कुमार की बात सुन कर दीर्घपृष्ठ ने रानी से कहा---कुमार यह बात अपने को लक्षित करके कह रहा है। मुझे कौआ और तुझे कोयल बनाया है । यह अपने को अवश्य दण्ड देगा। रानी ने कहा-आप इसकी चिन्ता न करें। यह बालक है। बाल क्रीड़ा करता है। __एक समय श्रेष्ठ नाति की हयिनी के साथ तुच्छ जाति के हाथी को देख कर कुमार ने उन्हें मृत्यु सूचक शब्द कहे । इसी प्रकार एक समय कुमार एक हंसनी और एक बगुले को पकड़ कर लाया और अन्तःपुर में जाकर उव स्वर से कहने लगा-इस हंसनी और बगुले के समान जो रमण करेंगे उन्हें मैं मृत्यु दण्ड दूंगा। - कुमार के वचनों को सुन करदीर्घपृष्ठ ने रानीसे कहा-इस बालक के वचन साभिप्राय हैं। बड़ा होने पर यह हमारे लिये अवश्य विघ्नकर्ता होगा। विष वृक्ष को उगते ही उखाड़ देना ठीक है। रानी ने कहा-आपका कहना ठीक है। इसके लिये कोई ऐसा उपाय सोचिये जिससे अपना कार्य भी पूरा हो जाय और लोकनिन्दा
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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