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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, छठा भाग ७७ उज्जयिनी ले आई और राजा की सेवा में उपस्थित कर दिया। राजा चण्डप्रद्योतन ने कहा-अभयकुमार ! तुमने मेरे साथ धोखा किया किन्तु मैंने भी कैसी चतुराई से पकड़वा कर तुझे यहाँ मंगवा लिया। अभयकुमार ने कहा-मासाजी ! अभिमान न करिये। इस उज्जयिनी के बाजार के बीच आपके सिर पर जूते मारता हुआ मैं आपको राजगृह ले जाऊँ तब मेरा नाम अभयकुमार समझना । राजा ने अभयकुमार की इस बात को हंसी में टाल दिया। __ कुछ समय पश्चात् अभयकुमार ने एक ऐसे आदमी की खोज की जिसकी आवाज राजा चएडप्रद्योतन सरीखी हो। जब उसे ऐसा आदमी मिल गया तो उसे अपने पास रख कर सारी बात उसे अच्छी तरह समझा दी। एक दिन उसे रथ में बिठाकर उसके सिर पर जूते मारता हुआ अभयकुमार उज्जयिनी के बाजार में होकर निकला। वह आदमी चिल्लाने लगा-अभयकुमार मुझे जूतों से मार रहा है, मुझे छुड़ाओ, मुझे छुड़ाओ । राजा चण्डप्रद्योतन सरीखी आवाज सुनकर लोग उसे छुड़ाने के लिये दौड़ कर आये। लोगों के आते ही वह श्रादमी और अभयकुमार दोनों खिलखिला कर हँसने लग गये। लोगों ने समझा-अभयकुमार चालक है, वालक्रीड़ा करता है। अतः वे सब वापिस अपने अपने स्थान चले गये। अभयकुमार लगातार पाँच सात दिन इसी तरह करता रहा । अब कोई भी आदमी उसे छुड़ाने नहीं आता था क्योंकि सब लोगों को यह पूर्ण विश्वास होगया था कि यह तो अभयकुमार की बालक्रीड़ा है। एक दिन उचित अवसर देख कर अभयकुमार ने राजा चण्डप्रद्योतन को बाँधकर अपने रथ में डाल लिया और उज्जयिनी के बाजार के बीच उसके सिर पर जूते- मारता हुआ निकला । चएडप्रद्योतन चिल्लाने लगा-दौड़ो, दौड़ो, अभयकुमार
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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