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________________ भी जने सिद्धन्त बोल संग्रह, छठाभाग एक कलाचार्य को सौंप दिया। कलाचार्य ने थोड़े ही समय में उसे बहत्तर कला में प्रवीण कर दिया। राजा ने कलाचार्य का आदर सत्कार कर इतना धन दिया कि जो उसके जीवन भर के लिए पर्याप्त था। धीरे धीरे सुबाहु कुमारबढ़ने लगा। जब वह युवक हो गया तब माता पिता ने शुभ मुहूर्त देख कर पुष्पचूला प्रमुख पाँच सौ राज कन्याओं के साथ विवाह कर दिया । अपने सुन्दर महलों में रहता हुआ तथा पूर्वमुकृत के फल स्वरूप पाँचों प्रकार के इन्द्रिय भोग भोगता हुआ सुबाहु कुमार सुख पूर्वक अपना समय बिताने सगा। एक समय श्रमण भगवान महावीर स्वामी हस्तिशीर्ष नगर के बाहर पुष्पकरएड उद्यान में पधारे। नगर निवासी लोग भगवान् को वन्दना नमस्कार करने के लिए जाने लगे। राजा अदीनशत्रु और मुबाहु कुमार भी बड़े ठाट के साथ भगवान् को वन्दना करने गए। धर्मोपदेश सुन कर जनता वापिस लौट गई। सुबाहु कुमार वहीं ठहर गया।हाथ जोड़ कर भगवान् से अर्ज करने लगा कि हे भगवन् ! धर्मोपदेश सुन कर मुझे बड़ी प्रसन्नता हई है। जिस प्रकार आपके पास राजकुमार आदि प्रत्रजित होते हैं उस तरह से प्रव्रज्याग्रहण करने में तो मैं समर्थ नहीं हूँ किन्तु आपके पास श्रावक के व्रत अङ्गीकार करना चाहता हूँ। भगवान् ने फरमाया कि धर्म कार्य में ढील मत करो। श्रावक के व्रत अङ्गीकार कर सुबाहु कुमार वापिस अपने घर आ गया। इसके पश्चात् गौतम स्वामी ने भगवान् से प्रश्न किया कि भगवन् ! यह सुबाहु कुमार सप लोगों को इतना इष्टकारी और प्रियकारी लगता है,इसका रूप पड़ा सुन्दर है। यह सारी ऋद्धि इसको किस कार्य से प्राप्त हुई है ? यह पूर्वभव में कौन था और इसने कौन से श्रेष्ठ कार्यो का आचरमा किया था ? भगवान् फरमाने लगे
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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