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________________ ५४ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला आज्ञा दी। आसन पर बैठ कर रानी ने अपना स्वान सुनाया। स्वम को सुन कर राजा ने कहा कि तुम्हारी कुक्षि से ऐसे पुत्र का जन्म होगा जो यशस्वी, वीर, कुल दीपक और सर्वगुण सम्पम होगा। स्वम का फल सुन कर रानी बहुत प्रसन्न हुई । प्रातः काल राजा ने स्वमशास्त्रियों को बुलाकर स्वम का फल पूछा । उन्होंने भी वतलाया कि रानी एक यशस्वी और वीर वालक को जन्म देगी। स्वम शास्त्रियों को बहुत सा धन देकर राजा ने उन्हें विदा किया। गर्भ के दो मास पूर्ण होने परधारिणी रानी को मेघ का दोहला उत्पन्न हुआ । अपने दोहले को पूर्ण करके धारणी रानी गर्भ की अनुकम्पा के लिये यतना के साथ खड़ी होती थी, यतना के साथ बैठती थी। यतना के साथ सोती थी। मेधा और आयु को बढ़ाने वाला, इन्द्रियों के अनुकूल, नीरोग और देश काल के अनुसार न त तिक्त, न अति कटु, न अति कपला, न अति अम्ल (खट्टा), न अति मधुर किन्तु उस गर्भ के हितकारक, परिमित तथा पथ्य आहार करती थी और चिन्ता, शोक, दीनता, भय, तथा परित्रास नहीं करती थी। चिन्ता, शोक, मोह, भय और परित्रास से रहित होकर भोजन, आच्छाइन, गन्धमाल्य और अलङ्कारों का भोग करती हुई सुखपूर्वक उस गर्भ का पालन करती थी। ___ समय पूर्ण होने पर धारिणी रानी ने सुन्दर और सुलक्षण पुत्र को जन्म दिया । हर्ष मग्न दासियों ने यह शुभ समाचार राजा अदीनशत्रु को सुनाया। राजा ने अपने मुकुट के सिगय सब आभूषण उन दासियों को इनाम में दे दिये तथा और सी बहुत सा द्रव्य दिया।पुत्र-जन्म की खुशी में राजाने नगर को सजाया।कैदियों को बन्धनमुक्त किया और खूब महोत्सव मनाया। पुत्र का नाम सुबाहु कुमार दिया। योग्य वय होने पर सुबाहु कुमार को शिक्षा प्राप्त करने के लिए
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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