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________________ ४२ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला प्राचीन समय में सर्वतोभद्र नाम की एक नगरी थी। जितशत्र राजा राज्य करता था । उसके महेश्वरदत्त नाम का पुरोहित था। राज्य की वृद्धि के लिए प्रति दिन वह चार (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र) लड़कों का कलेजा निकाल कर होम करता था। अष्टमी,चतुर्दशी को आठ,चौमासी को १६,पएमासी को ३२, अष्टमासी को ६४ और वर्ष पूरा होने पर १०८ लड़कों को मरवा कर ' उनके कलेजे के मांस का होम करता था। दूसरे राजा का आक्रमण होने पर ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र प्रत्येक के एक सौ आठ आठ अर्थात् ४३२ लड़कों का होम करता था। इस प्रकार महान् पाप कर्मों को उपार्जित कर वह पांचवीं नरक में गया।वहाँसे निकल कर सोमदत्त पुरोहित की वसुदत्ता भार्या की कुक्षि से उत्पन्न हुआ। उसका नाम बृहस्पतिदत्त कुमार रखा गया। भगवान् ने फरमाया कि हे गौतम ! तुमने जिस पुरुषको देखा है वह वृहस्पतिदत्त है। शतानीक राजा के पुत्र उदायन कुमार के साथ वालक्रीड़ा करता हुआ वह यौवन वय को प्राप्त हुआ शतानीक राजा की मृत्यु के पश्चात् उदायन राजा हुआ और बृहस्पतिदत्तपुरोहित हुआ। वह राजा का इतना प्रीतिपात्र होगया था कि वह उसके अन्तःपुर में निःशंक होकर वक्त वेवक्त हर समय श्रा जा सकता था। एक समय वह पद्मावती रानी में आसक्त होकर उसके साथ कामभोग भोगने में प्रवृत्त हो गया। इस बात का पता लगने पर राजा अत्यन्त कुपित हुआ। उसे अपने सिपाहियों से पकड़वा कर मंगवाया और अब उसे मारने की आज्ञा दी है। आज तीसरे पहर वह शूली में पिरोया जायगा। यह वृहस्पतिदत्त यहाँ अपने पूर्व कर्मों का फल भोग रहा है । यहाँ से मर कर पहली नरक में उत्पन्न होगा । मृगापुत्र की तरह संसार में परिभ्रमण करके मृगपने उत्पन्न होगा। शिकारी के हाथ से मारा
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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