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________________ २२ . श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला दूसरे प्राणियों की हिंसा कर वह उन्हें असमाधि पहुँचाता है। प्राणियों की हिंसा करने से परलोक में भी असमाधि प्राप्त करता है। इस प्रकार जल्दी जल्दी चलना असमाधि का कारण होने से असमाधि स्थान है। (२) अप्पमज्जियचारी-बिना पूँजे चलना, बैठना, सोना उपकरण लेना और रखना, उच्चारादि परठाना वगैरह ।स्थान तथा वस्त्र पात्र आदि वस्तुओं को बिना देखे भाले काम में लेने से प्रात्मा तथा दूसरे जीवों की विराधना होने का डर रहता है इसलिए यह असमाधि स्थान है। (३) दुप्पमज्जियचारी-स्थान आदि वस्तुओं को लापरवाही के साथ अयोग्य रीति से पूंजना, पूंजना कहीं और पैर कहीं धरना वगैरह । इससे भी अपनी तथा दूसरे जीवों की चिराधना होती है। (४) अतिरित्त सेज्जासणिए-रहने के स्थान तथा बिछाने के लिए पाट आदि का परिमाण से अधिक होना । रहने के लिए बहुत बड़ा स्थान होने से उसकी पडिलेहणा वगैरह ठीक नहीं होती। इसी प्रकार पीठ, फलक, आसन आदि वस्तुएं भी यदि परिमाण से अधिक हों तो कई प्रकार से मन में असमाधि हो जाती है। (५) रातिणिअपरिमासी-ज्ञान, दर्शन तथा चारित्र में अपने से बड़े प्राचार्य वगैरह पूजनीय पुरुषों का अपमान करना । विनय रहित होने के कारण वह स्वयं भी असमाधि प्राप्त करता है और उसके व्यवहार से दूसरों को भी असमाधि होती है। इसलिये ऐसा करना असमाधि स्थान है। (६) थेरोवघाइए-दीक्षा आदि में स्थविर अर्थात् बड़े साधुओं के प्राचार तथा शील में दोष बता कर, उनके ज्ञान आदि को गलत कह कर अथवा अवज्ञादि करके उनका उपहनन करने वाला तथा उनकी घात चिन्तवने वाला असमाधि को प्राप्त होता है।
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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