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________________ २४६ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला में रहता हूं। इतने में रोहक का पिता वहां आ पहुंचा। रोहक अपने पिता के साथ रवाना हो गया। राजा भी अपने महल में चला आया और सोचने लगा कि मेरे ४६६ मन्त्री हैं। यदि कोई अतिशय बुद्धिशाली प्रधान मन्त्री बना दिया जाय तो मेरा राज्य सुख पूर्वक चलेगा। ऐसा विचार कर राजा ने रोहक की बुद्धि की परीक्षा करने का निश्चय किया। रोहक की पौत्पत्तिकी बुद्धि की यह पहली कथा है। (४) शिला-एक दिन राजा ने नटों के उस गांव में यह आदेश भेजा कि तुम सब लोग राजा के योग्य मण्डप तय्यार करो। मण्डप ऐसी चतुराई से बनना चाहिए कि गांव की बाहर वाली घड़ी शिला, बिना निकाले ही छत के रूप बन जाय । राजा के उपरोक्त आदेश को सुन कर गांव के सब लोग बड़े असमञ्जस में पड़ गये। गांव के बाहरसभा करके सब लोग परस्पर विचार करने लगे कि किस प्रकार राजा की इस कठिन आज्ञा का पालन किया जाय ? आज्ञा का पालन न होने पर राजा कुपित होकर अवश्य हीभारी दण्ड देगा। इस तरह चिन्तित होकर विचार करते करते दोपहर हो गया किन्तु कोई उपाय न सूझा । रोहक पिता के बिना भोजन नहीं करता था। इसलिए भूख से व्याकुल हो वह भरत के पास आया और कहने लगा-पिताजी ! मुझे बहुत भूख लगी है। भोजन के लिए जल्दी घर चलिए । भरत ने कहा-वत्स ! तुम सुखी हो । गांव के कष्ट को तुम नहीं जानते। रोहक ने कहा-पिताजी ! गांव पर क्या कष्ट आया है ? भरत ने रोहक को राजा की आज्ञा कह सुनाई। सब बात सुन लेने पर हँसते हुए रोहक ने कहा-पिताजी ! आप लोगचिन्ता न कीजिए। यदि गांव पर यही कष्ट है तो यह सहज ही दूर किया जा सकता है। मण्डप बनाने के लिए शिला के चारों तरफ जमीन खोद
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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