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________________ - ~ ~- - श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, छठा भाग २४५ . राहक ने सोचा-मेरे दुर्व्यवहार से अप्रसन्न हुई माता कदाचित् मुझे विष देकर मार दें, इमलिए अब मुझे अकेले भोजन न करना चाहिए किन्तु पिनी के साथ ही भोजन करना चाहिए। ऐसा सोच कर रोहक सदा पिता के साथ ही भोजन करने लगा और सदा पिना के साथ ही रहने लगा। __ एक समय भरत किसी कार्यवश उज्जयिनी गया ।रोहक भी उसके साथ गया । नगरी देवपुरी के समान शोभित थी । उसे देख कर रोहक बहुत प्रसन्न हुआ । उसने अपने मन में नगरी का पूर्ण चित्र खींच लिया। कार्य करके भरत वापिस अपने गांव की ओर रवाना हुया । जब वह शहर से निकल कर शिप्रा नदी के किनारे पहुंचा तब भरत की भूली हुई चीज की याद आई । रोहक को वहीं बिठाकर वह वार्पिम नगरी से गया। इधर रोहक ने शिप्रा नदी के किनारे की बालू रेत पर राजमहल तथा कोट किले सहित उज्जयिनी नगरी का हुबह चित्र खींच दिया। संयोगवश घोड़े पर सवार हुआ राजा उधर आ निकला। राजा को अपनी चित्रित की हुई नगरी की ओर आते देख कर रोहक बोला-ऐ राजपुत्र ! इस रास्ते से मत आओ । राजा बोला-क्यों ? क्या है ? रोहक बोला-देखते नहीं ? यह राजभवन है। यहां हर कोई प्रवेश नहीं कर सकता। यह सुन कर कौतुकवश राजा घोड़े से नीचे उतरा। उसके चित्रित किये हुए नगरी के हयह चित्र को देख कर राजा बहुत विस्मित हुआ। उसने बालक से पूछा-तुमने पहले कभी इम नगरी को देखा है ? बालक ने कहा-नहीं । आज ही मैं गांव से आया हूं। बालक की अपूर्व धारणा शक्ति देख कर राजा चकित हो गया। वह मन ही मन उसकी बुद्धि की प्रशंसा करने लगा। राजा ने उससे पूछावत्स ! तुम्हारा नाम क्या है और तुम कहां रहते हो ? बालक ने कहा-मेरा नाम रोहक है और मैं इस पास वाले नटों के गांव
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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