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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला हैं और कहा है कि इसी प्रकार के और भी जो शब्द हैं वे आकाश के पर्यायवाची हैं । सत्ताईस पर्याय शब्द ये हैं: (१) आकाश (२) अकाशास्तिकाय (३) गगन (४) नभ (५) सम (६) विषम (७) खह (८) विहायस् (६) वीचि (१०) विचर १११) अंबर (१२) अंबरस (१३) छिद्र (१४)शुपिर (१५) मार्ग (१६) विमुख (१७) अर्द (१८) व्यद (१६आधार (२०) व्योम (२१)भाजन (२२)अन्तरिक्ष (२३)श्याम (२४)अवकाशांतर (२५) अगम (२६) स्फटिक (२७) अनन्त । भगवनी शतक २० उ० ३ मू० ६६४ ,६४६-औत्पत्तिकी बुद्धि के सत्ताईस दृष्टान्त औत्पत्तिकी बुद्धि का लक्षण इस प्रकार हैपुवमदिमस्सुयमवेइय, तक्खणविसुद्धगहियत्था । अव्वाहय फल जोगा, बुद्धी उप्पत्तिया नाम || अर्थ-पहले विना देखे, विना सुने और विना जाने हुए पदार्थों को तत्काल यथार्थ रूप से ग्रहण करने वाली तथा अबाधित (निश्चित) फल को देने वाली वुद्धि औत्पत्तिकी कहलाती है। इस बुद्धि के सत्ताईस दृष्टान्त हैं । वे नीचे दिये जाते हैंभरह सिल पणिय रुखे, खुड्डग पड सरड काय उच्चारे। गय धयण गोल खंभे, खुड्डग मन्गिस्थि पहपुत्ते ॥ महुसित्य, मुद्दि अंके य, नाणए भिक्खु चेडगणिहाणे। सिक्खा य अत्थसत्थे, इच्छा य महं सय सहस्से ।। अर्थ-(१) भरत (२) पणित (शर्व) (३) वृक्ष (४) खुड्डग (अंगूठी) (५) पट (६) शरट (गिरगिट) (७) कौआ (८) उच्चार (६) हाथी (१०) धयण (११)गोलक (१२) स्तम्भ (१३) क्षुल्लक (१४)मार्ग (१५)स्त्री (१६)पति (१७)पुत्र (१८)मधुसिक्थ (१६) मुद्रिका (२०) अंक (२१)नायक (२२) मिनु (२३) चेटकनिधान
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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