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________________ २२० श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला परमाधार्मिक देव उन्हें पूर्वभव के पापों की याद दिलाते हैं। निष्कारण क्रोध करके चाबुक से उनकी पीठ पर मारते हैं । (४) सुतप्त लोहे के गोले के समान जलती हुई पृथ्वी पर चाये जाते हुए नारकी जीव दीन स्वर से रुदन करते हैं। गर्म जुए + जोते हुए और बैल की तरह चावुक आदि से मार कर चलने के लिए प्रेरित किये हुए नारको जीव अत्यन्त करुण विलाप करते हैं। (५) परमाधार्मिक देव नारकी जीवों को तये हुए लोहे के गोले के समान उष्ण पृथ्वी पर चलने के लिए बाध्य करते हैं तथा खुन और पीव से कीचड़ वाली भूमि पर चलने के लिए उन्हें मजबूर करते हैं। दुर्गमकुम्भी, शाल्मली आदि दुःख पूर्ण स्थानों में जाते हुए नारकी जीव यदि रुक जाते हैं तो परमाधार्मिक देव डण्डे और चाबुक मार कर उन्हें आगे बढ़ाते हैं। (६) तीव्र वेदना वाले स्थानों में गये हुए नारकी जीवों पर शिलाएं गिराई जाती हैं जिससे उनके अङ्ग चूर चूर होजाते हैं। सन्तायनी नाम की कुम्भी दीर्घ स्थिति वाली है। पापी जीव यहाँ पर चिर काल तक दुःख भोगते रहते हैं। (७) नरकपाल नारकी जीवों को गेंद के समान आकार वाली कुम्भी में पकाते हैं । पकते हुए उनमें से कोई जीव भाड़ के चने की तरह उछल कर ऊपर जाते हैं परन्तु वहां भी उन्हें सुख कहाँ ? वैक्रिय शरीरधारी हुंक और काक पक्षी उन्हें खाने लगते हैं। दूसरी तरफ मागने पर वे सिंह और व्याघ्र द्वारा खाये जाते हैं। (E) ऊँची चिता के समान क्रियकृत निर्धूम अनि का एक स्थान है। उसे प्राप्त कर नारकी जीव शोक संतप्तहोकर करुण क्रन्दन करते हैं। परमाधार्मिक देव उन्हें सिर नीचा करके लटका देते हैं। उनका सिर काट डालते हैं तथा तलवार आदि शस्त्रों से उनके शरीर के टुकड़े टुकड़े कर देते हैं।
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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