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________________ श्री जन सिद्धान्त बोल संग्रह, छठा भाग २१३ सकता है ? दूसरी बात यह है कि स्पर्श रहितता की नित्यत्व के साथ व्यासि नहीं है। (२०) उपलब्धिसमा--निर्दिष्ट कारण (साधन) के अभाव में साध्य की उपलब्धि बता कर दोप देना उपलब्धिसमा जाति है। जैसे-प्रयत्न के बाद पैदा होने से शब्द को अनित्य कहते हो, लेकिन ऐसे बहुत से शब्द हैं जो प्रयत्न के बाद न होने पर भी अनित्य हैं। मेघ गर्जना श्रादि में प्रयत्न की आवश्यकता नहीं है। यह दुषण मिथ्या है क्योंकि साध्य के अभाव में साधन के अभाव का नियम है, न कि साधन के अभाव में साध्य के प्रभाव का। अग्नि के अभाव में नियम से धुंआ नहीं रहता, लेकिन धुंए के अभाव में नियम से अग्नि का प्रभाव नहीं कहा जा सकता। (२१) अनुपलब्धिसमा-उपलब्धि के अभाव में अनुपलब्धि का प्रभाव कह कर दूषण देना अनुपलब्धिसमा जाति है । जैसे किसी ने कहा कि उच्चारण के पहले शब्द नहीं था क्योंकि उपलब्ध नहीं होता था। यदि कहा जाय कि उस समय शब्द पर आवरण था इसलिए अनुपलब्ध था तो उसका आवरण तो उपलब्ध होना चाहिए । जैसे कपड़े से ढकी हुई चीज नहीं दीखती वो कपड़ा दीखता है, उसी तरह शब्द का आवरण उपलब्ध होना चाहिए । इसके उत्तर में जातिवादी कहता है, जैसे आवरण उपलब्ध नहीं होता वैसे श्रावरण की श्रनुपलब्धि (अभाच) भी तो उपलब्ध नहीं होती । यह उत्तर ठीक नहीं है, आवरण की उपलब्धि न होने से ही प्रावरण की अनुपलब्धि उपलब्ध हो जाती है। (२२) अनित्यसमा-एक की अनित्यता से सब को अनित्य कह कर दूपण देना अनित्यसमा जाति है । जैसे-यदि किसी धर्म की समानता से आप शब्द को अनि य सिद्ध करोगे तो सत्व की समानता से सब चीजें अनित्य सिद्ध हो जाएंगी। यह उत्तर ठीक
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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