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________________ २१२ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला के स्वरूप सं स्पष्ट विदित हो जाती है । जब अविनाभाव सम्बन्ध नहीं मिटता तो हेतु अहेतु कैसे कहा जा सकता है ? काल की एकता से साध्य साधन में सन्देह नहीं हो सकता क्योंकि दो वस्तुओं के अधिनाभाव में ही साध्य साधन का निर्णय हो जाता है। अथवा दोनों में से जो असिद्ध हो वह साध्य और जो सिद्ध हो उसे हेतु मान लेने से सन्देह मिट जाता है। (१७) अर्थापत्तिसमा-अर्थापत्ति दिखला कर मिथ्या दृषण देना अर्थापत्तिसमा जाति है। जैसे-'यदि अनित्य के साधर्म्य (कृषिमता) से शन्द अनित्य है तो इसका मतलब यह हुआ कि नित्य (आकाश) के साधर्म्य (स्पर्श रहितपना) से वह नित्य है।' यह उत्तर असत्य है क्योंकि स्पर्श रहित होने से ही कोई नित्य कहलाने लगे तो सुख वगैरह भी नित्य कहलाने लगेंगे। (१८) अविशेषसमा--पक्ष और दृष्टान्त में अविशेषता देखकर किसी अन्य धर्म से सब जगह (विपक्ष में भी) अविशेषता दिखला कर साध्य का आरोप करना अविशेषसमाजाति है जैसे- 'शब्द और घट में कृत्रिमता से अविशेषता होने से अनित्यता है तो सत्र पदार्थों में सत्व धर्म से अविशेषता है इसलिए सभी (आकाशादि विपक्ष भी) अनित्य होना चाहिए यह असत्य उत्तर है कृत्रिमता का अनित्यता के साथ अविनाभाव सम्बन्ध है, लेकिन सत्व का अनित्यता के साथ नहीं है। (१६) उपपत्तिसमा--साध्य और साध्यविरुद्ध, इन दोनों के कारण दिखला कर मिथ्या दोष देना उपपत्तिसमा जाति है। जैसे-यदि शब्द के अनित्यत्व में कृत्रिमताका कारण है तो उसके नित्यत्व में म्पर्श रहितता कारण है । जहाँ जातिवादी अपने शब्दों से अपनी बात का विरोध करता है । जब उसने शब्द के अत्यित्व का कारण मान लिया तो फिर नित्यत्व का कारण कैसे मिल
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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