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________________ --- - - - श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, छठा भाग १६७ ommmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm (१) महापद्म (पद्मनाथ) (२) सूरदेव (३)सुपार्श्व (४) स्वयंप्रभ (५) सर्वानुभूति (६) देवश्रुत (७) उदय (८)पेढाल त्र (6) पोहिल (१०) शतकीति (११) मुनिसुव्रत (१२) अमम (१३) निष्कपाय (१४) निष्पलाक (१५) निर्मम (१६) चित्रगुप्त (१७) समाधि जिन (८) संवरक (१६) यशोधर (२०) विजय (२१) मल्लि (२२) देवजिन (२३) अनन्तवीर्य (२४) भद्रजिन । (सयवायाग १५८ वा समाय) (प्रवचनारोद्धार ७ वा द्वार गा० २६३-२६५) ६३१--ऐरवत क्षेत्र के आगामी २४ तीर्थङ्कर पाने वाले उत्सपिणी काल में जम्वृष्टीप के ऐरवत क्षेत्र में चौबीस तीर्थकर होगे। उनके नाम नीचे लिखे अनुसार है (१) सुमङ्गल (२) सिद्धार्थ (३) निर्वाण (४) महायश (५) धर्मध्वज (६) श्रीचन्द्र (७) पुप्पकेतु (८) महाचन्द्र (ह) श्रुतसागर (१०) सिद्धार्थ (११) पुण्यघोष (१२) महाघोष (.३) सत्यसेन (१४) शूरसेन (१५) महासेन (१६) सर्वानन्द (१७) देवपुत्र (१८) सुपार्श्व (१६) सुव्रत (२०) सुकोशल (२१) अनन्तविजय (२२) विमल (२३) महाबल (२४) देवानन्द । (समवायाग १५८ वा समवाय)(प्रवचनसारोद्धार ७ वा दार गा० ३००-३०२) ६३२-सूयगडांग सूत्र के दसवें समाधि अध्ययन की चौवीस गाथाएं सूयगडांग सूत्र में दो श्रुतस्कन्ध हैं। पहले श्रुतस्कन्ध में सोलह अध्ययन हैं और दूसरे में सात । पहले श्रुतस्कन्ध के दसवें अध्ययन का नाम समाधि अध्ययन हैं। इसमें आत्मा को सुख देने वाले धर्म का स्वरूप बताया गया है । इसमें चौवीस गाथाएं हैं, जिनका भावार्थ लिखे अनुसार है-- (१) मतिमान् भगवान् महावीर स्वामी ने अपने केवलज्ञान
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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