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________________ = श्री जैन सिद्धान्त वोल संग्रह, छठा भाग १६७ शीतकाल में पहनूंगा । यावज्जीवन परिपहों को सहन करने वाले भगवान् ने दूसरे तीर्थङ्करों के रिवाज के अनुसार इन्द्र के दिए हुए वस्त्र को केवल धारण कर लिया था ।.. (३) दीक्षा लेते समय भगवान के शरीर में बहुत से सुगन्धित पदार्थ लगाए गए थे । उनसे आकृष्ट होकर भ्रमर आदि बहुत से जन्तु थाकर भगवान् के शरीर में लग गए और उनके रक्त तथा, मांस को चूसने लगे । v (४) इ-द्र द्वारा दिए गए वस्त्र को भगवान् ने लगभग तेरह महीनों तक अपने स्कन्ध पर धारण किया। इसके बाद भगवान ख रहित हो गए ! · (५) भगवान् सावधान होकर पुरुष प्रमाण मार्ग को देखकर ईर्यासमिति पूर्वकं चलते थे। उस समय छोटे छोटे बालक उन्हें देखकर डर जाते थे । वे सब इकडे होकर भगवान् को लकड़ी तथा घूंसे यादि से मारते और स्वयं रोने लगते। (६) यदि भगवान् को कहीं गृहस्थों बाजी वमति में ठहरना पड़ता और स्त्रियां उनमे प्रार्थना करतीं तो भगवान उन्हें मोच मार्ग में बाधक जानकर मैथुन का सेवन नहीं करते थे । श्रात्मा को वैराग्य मार्ग में लगा धर्मध्यान और शुक्र ध्यान में लीन रहते थे । (७) भगवान् गृहस्थों के साथ मिलना जुलना छोड़कर धर्मध्यान में मग्न रहते थे। यदि गृहस्थं कुछ पूछते तो भी बिना बाजे वे अपने मार्ग में चले जाते । इस प्रकार भगवान् सरल स्वभाव से मोच मार्ग पर अग्रसर होते थे । (८) भगवान् की कोई प्रशंसा करता तो भी वे उससे कुछ नहीं बोलते थे। इसी प्रकार जो मनार्य उन्हें दण्ड आदि से मारते थे, बालों को खींचकर कर देते थे, उन पर भी वे क्रोध नहीं करते थे । (६) मोक्षमार्ग में पराक्रम करते हुए महामुनि महावीरं श्रत्यन्त ر
SR No.010513
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta, Bhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1943
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size10 MB
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